||किराये का मकां||
किराये के मकान में
सांसे लेने के लिए भी
चुकानी पड़ती है कीमत
महीने की कोई एक निश्चित तारीख पर
मकान मालिक का
यूं ही कमरे पर धमक आना भी
अंदर तक हिला देता है
खासतौर पर तब
जब जेब गरम ना हो
तब अपराध बोध से भर जाता है मन
मकान मालिक
यूं तो
कराया बढ़ाने के लिए
सीधे कुछ नहीं कहेंगे
बस इतना भर कहते हैं
आपको बाथरूम शेयर करना पड़ेगा
थोड़ी तकलीफ तो होगी
लेकिन एडजस्टमेंट कर लीजिये
आपके पास बाइक होगी तो
अपने घर का कोई कचरानुमा सामान पोर्च में रखकर कहेंगे
आपको कष्ट तो होगा लेकिन
बाइक सड़क पर ही रख लीजिए
कुछ और अच्छे हुए तो वह
आपके भीतर तक झांका करेंगे
कभी किचन में आकर कहेंगे
टाइल्स गंदगी हो गई है
जरा हटिये, मैं साफ कर दूं
तब आप पानी पानी हो जाएंगे
अच्छे मकान मालिक
आपके जूते करीने से लगाकर कहेंगे
बिखेर हुए थे. मैंने ठीक कर दिए
वह आपकी नौकरी और पैकेज के बारे में जानना चाहेंगे
फिर कहेंगे ओह, बड़ा शोषण है
बेचारापन का एहसास कराएंगे
लेकिन किराया कम नहीं करेंगे
गनीमत यह है कि अच्छे बने रहने के लिए
किराया भी नहीं बढ़ाएंगे
बस धीरे धीरे
सुविधाओं में कटौती करेंगे
अच्छे मकान मालिक की
अच्छाई भी इशारों में ही होती है
हमें किराये के मकान में
सांसे लेनी है उनकी इच्छा के मुताबिक
दरअसल बेबसी यह है
हर कहीं नहीं हो सकता हर किसी घर।
लेखक - वरिष्ठ पत्रकार है।