पृथ्वी दिवस पर विशेष // यमुना घाटी: बूंदो की संस्कृति का पर्याय 


||यमुना घाटी: बूंदो की संस्कृति का पर्याय||


उत्तराखण्ड हिमालय में जल सहजने की लोक परम्परा है। जहां कही भी जल सस्कृति के प्रति लोगों का जुडाव देखेंगें, वहां पानी को सिर्फ देवतुल्य ही मानते है, अर्थात पानी के संरक्षण को यहां आध्यात्म का एक मूल आधार माना गया है। उत्तराखण्ड की जल संस्कृति को लोग वेद पुराणों में लिखित कथा के अनुरूप मानते है। यह सच है कि अधिकांश स्थानों के नाम इन पुराणों मेे वर्णित आलेखों से मिलते-जुलते भी है। 


यमुना घाटी में जल संरक्षण की संस्कृति के अब अवशेष भर रह गये है तथा अधिकतर स्थानों पर लोंगो ने सीमेन्ट पोतकर सौन्दर्यकरण के नाम से इन्हें नये तरह से बनाने की कोशिश की है। जहां जहां लोगों ने सीमेन्ट पोत दिया वंहा पर पानी की मात्रा भी कम हुई है और जहां दो धारे हुआ करते थे वहां एक धार सूख ही गया है। 


सीमेन्ट पोतने के पश्चात इन धारों तथा कुण्डों की आध्यात्म से जुड़ी परम्परा भी समाप्त हुई है। यदि कुण्ड के बाहर सीमन्ट लगा दिया तो लोग सीमेन्ट तक जूतो सहित चले जाते है। जबकि जलधारा के पास लोग नंगे पावं ही जाते थे। यही नही पानी के पास बनी पत्थर की आकृतियां भी मटियामेट की गई है। जिससे जल संरक्षण की लोक परम्परा लुप्त प्रायः हो गयी हैं। अब यह नक्कासीदार आकृतियां दिखाई नही देती और लोग जल संस्कृति को भूलते जा रहे है। यहां तक कि कुण्ड के अन्दर भी पत्थरों पर सीमेन्ट लगा दिया गया और तब से कुण्ड में एकत्रित पानी तो सूख ही गया है।


सम्पूर्ण यमुना घाटी में मात्र एक स्थान पर केदार कुण्ड है यमुना घाटी में केदार कुण्ड का होना बहुत आश्चार्य भी है परन्तु इससे जुड़ी कहानी दिल को संतुष्ट कर देती है। यमुना घाटी में जहां भी छोटी-छोटी नदियों का संगम बना है वहां लोग चुटकी में कह देते है कि यह त्रेवेणी है। भला यह इलाहबाद वाला संगम न हो परन्तु तीन धाराओं का संगम तो है ही। यमुना घाटी में गंगा से जुड़ी कई कहानियां है यदि दो धाराऐं गंगा यमुना से प्रचलित है तो तीसरी बहने वाली धारा को लोग सरस्वती भी कह देते है। गंगनाणी कुण्ड से निकलने वाली धारा यमुना से संगम बनाती है तथा तीसरी धारा भी यही पर संगम बनाती है जिसे लोग सरस्वती कहते है यद्यपि यह धारा सरताल से निकलकर बढियार गांव होते हुए गंगनाणी के पास यमुना मे संगम बनाती। देहरादून से लगभग 100 किमी0 की दूरी पर स्थिति गंगनाणी धारा यह कहानी बयां करती है कि यह पानी गंगा का है लोग इस पानी को गंगा जल के रूप में प्रयोग करते है। 


 


यहां पर भी लोगों ने बताया कि सन् 1992 में उत्तरकाशी में महाशिव पुराण का आयोजन हुआ तत्काल उत्तरकाशी में हुए हबन की सामग्री गंगा में विसर्जित हुई। यह सामग्री यमुना घाटी मे गंगानाणी धारा नामक स्थान पर उक्त पानी के साथ बह कर आई जिसे लोग देखकर आश्चर्य में पड़ गये परन्तु लोगो को मालूम था कि यह हबन में लाई जाने वाली सामग्री है और  उतरकाशी में आजकल महाशिव पुराण चल रहा है। यह धारा यहां कैसे निकली। स्थानीय लोगों में कहानी प्रचलित है पाण्डव जब लाखामण्डल में अंज्ञात वास में थे तो उस दौरन उन्हे गंगा जल की आवश्यकता दुर्गा पूजा के लिए पड़ी वे यमुना घाटी से गंगा घाटी की तरफ नही जा सकते थे अलबत्ता अर्जुन ने अपने धनुष से पहाड़ पर तीर मारा जहां से जल धारा फूट पड़ी और यह गंगा धारा हो गई यानि गंगनाणी। उक्त स्थान पर यमुना नदी में बड़े -बड़े पत्थर पड़े है उन पत्थरों को लोग कहते है कि यह पत्थर अर्जुन के तीर से पहाड़ से टूटकर टुकड़े-टुकड़े हुए है जो अवशेष आज भी है। महाभारत काल के शिला लेख भी यमुना घाटी में बताये जाते है। गंगनाणी धारा से 6 किमी0 दूर लाखामण्डल में बने म्यूजिम में एक शिला लेख है जिसकी भाषा आज तक किसी के समझ नही आई है इसको भी पाण्डव काल का लेख बताते है।


लाखामण्डल के सामने पर कुअंा नामक स्थान हेै कुआं का तत्पर्य हम लोग पानी के कुण्ड से समझते है हालांकि उक्त स्थान पर कोई विशाल कुआं नही है उस जगह पर लाखी-पाखी का जंगल कहते है। लोग कहते है कि यहां पर जो पानी का कुण्ड व धारा है वह भाग्यशाली लोंगो को मिलता है।


बताया गया कि कुआं गांवा का एक व्यक्ति पशुओं के लिए चारा पति लाने के लिए उक्त जंगल में पंहुचा जब उसने पेड़ पर चढ़कर नीचे देखा तो पेड़ की जड़ पर उसे एक सुन्दर कुण्ड दिखाई दिया वह डर गया और उसकी हाथ की दरान्ती कुण्ड में गिर गई वह डरा-सहमा जब नीचे उतरा तो कोई कुण्ड नही था परन्तु उसे उक्त स्थान पर अपनी दरान्ती सोने जैसे चमकती हुई दिखाई दी। दरअसल वह दरान्ती लोहे से सोने में बदल गईं। इस कहानी से उस अदृश्य कुण्ड की जानकारी प्राप्त होती है। बताया जाता कि यह कुण्ड ऐसे लोगों ने देखा जिनके भाग्य बदल गये। आज भी लाखी-पाखी के जंगल में जाना प्रतिबन्धित है जो जायेगा वह स्वच्छ एंव नंगे पांव ही जायेगा।


इस घाटी में गांव व स्थानों के नाम पानी से संबन्धित है जैसे कफनौल, रूपनौल, सरगांव, कुड़, कुण्ड, बडियाड़ आदि अर्थात कफनौल-नौले से तात्पर्य, कुड़ एंव कुण्ड का तात्पर्य कुआं अथवा कुण्ड से, बडियाड़ का तात्पर्य बावड़ी से सर का तात्पर्य पानी से, ऐसे कई नाम इस घाटी में प्रचलित है। जल संस्कृति में एक खास बात इस क्षेत्र में भी है कि नई बहू का एवं गांव में आये मेहमान का पहला परिचय पानी के इन धाराओं से ही कराते है।