!जौनसार के रतन, रतन सिंह जौनसारी, नमन!
उनका मुस्कराता हुआ चेहरा, पैंट-शर्ट-वेल्ट पहने, अक्सर आपको वे चक्कदार शर्ट पहने ही मिलें होंगे। यहां तक की आपने यदि जौनसार क्षेत्र में किसी से भी उनके बारे में जानना चाहा हो तो गुरूजी कहकर उनका परिचय मिला होगा। जब आप उनसे मिले होंगे मिलते ही आपको कविता परोसी गई होगी।
यह खास है कि नेता हो या अफसर, रंगकर्मी हो या समाजसेवी जौनसार में उन्हें सिर्फ व सिर्फ गुरूजी नाम से ही जाना जाता था। यह शख्स थे रतन सिंह जौनसारी। हालांकि वे हमारे बीच नहीं है। पर उनके जन्मवार पर उन्हे श्रद्धांजली स्वरूप। उन्होंने अपनीे जीवन के छः से सात दशक साहित्य सृजन में लगाया है। उनका यह परिचय इतना ही नहीं है। वे ना कि सिर्फ एक प्रख्यात कवि थे बल्कि जौनसार क्षेत्र के प्रबुद्ध नागरिक समाज में उनका एक खास अहूदा रहा है यही वजह है कि लोग उन्हें ‘‘गुरूजी’’ शब्द से नवाजते थे।
स्व॰ जौनसारी जहां हिन्दी कविताओ के पारखी रचनाकार रहे है वहीं वे अपनी पैत्रिक भाषा जौनसारी में भी कविता व गीत लिखने में कभी पिछे नहीं रहे हैं। उनके गीत व कविताऐं जनसरोकारो से लबरेज रहे है। ‘‘प्रजातन्त्र से दूर है प्रजा का गांव, लुका छुपी वाला कोई काम नहीं करते, हम लोग ये तमाशा सरेआम कर रहे हैं, जब वे विपक्ष थे, यही काम करते थे, अब हम हैं तो वही काम कर रहे हैं।, लेखा रख्या देखी, ऐब नू देखिया, फेर बि देखना ई देखना, यू देखा नेता कू खैकना, (खैकना=खोपड़ी) आदि कई कालजय रचनाओं का एक जखीरा उनके पास मौजूद रहा है। गौरतलब है कि उनकी अधिकांश रचनाऐं अप्रकाशित रही है। फिर भी 5000 कविताओं का एक वृहद भण्डार जौनसारी की पुस्तकालय में प्रकाशन की इन्तजारी में है।
इसके अलावा उन्होने ‘‘जौनसार-बावर एक सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक अध्ययन’’ जैसे कालजय गद्य की भी रचना की है, आधा दर्जन से भी अधिक उनके पद्य के संकलन प्रकाशित है। उनके दो महाग्रन्थ गद्य के रूप में ‘‘लाखामण्डल और जौनसार-बावर में महिलाओं की स्थिति’’ पर प्रकाशन के लिए तैयार थी, पर अब तक प्रकाशित नहीं हो पाई है।
उन्होने कविताओ की रचना ही नहीं की वरन् पर्वतीय क्षेत्र के लोक गीतो में प्रस्तुत पहली तुकबन्दी की लाईन को हटाने का पहला और नायाब प्रयोग किया है। आज उनके सभी लोक गीतो में कोई तुकबन्दी नही है दोनो पंक्तियो का कुछ ना कुछ अर्थ मिलता है। वे बताते थे कि उनकी साहित्यक व सांस्कृतिक यात्रा सन् 1951 में आरम्भ हुई थी। तत्काल वे कक्षा 07 के विधार्थी थे। उन्होंने अपने जिन्दगी के छः-सात दशक छन्द, दोहे, मुहावरे, गीत, गजलें, बच्चो के लिए कविताऐं आदि के अलावा विभत्स रस को छोड़कर सभी रसो में पद्य की रचनाऐं की है। जबकि 80 के दशक में उनके द्वारा रचित कविताऐं देश की नामचीन ‘‘दून स्कूल’’ में अध्ययनरत बच्चो को पढाई जाती थी। अब तक उन्होने 250 से अधिक बाल कविताओं की रचना की है जिनमें ‘‘धूप छाव में रंग, बच्चो हो जाओ तैयार’’ प्रमुख कविता संग्रह हैं। यह उल्लेखनीय है कि 70 के दशक में वे अकेले ही दूरदर्शन व आकाशवाणी मे जाकर जौनसारी लोक गीतो की रिकार्डिंग करते थे। इतनाभर नहीं वे राज्य बनने से पूर्व संगीत नाटक अकादमी लखनऊ उ॰प्र॰ में पर्वतीय लोक संस्कृति के लिए संदर्भ व्यक्ति के रूप में कई वर्षो तक कार्य करते रहे है।
कुलमिलाकर वे जहां एक कुशल शिक्षक के रूप में जाने जाते थे वहीं उन्होने कवि के रूप में भी अलग पहचान बनाई है। वे आज हमारे बीच में नही हैं, पर उनकी रचनाऐं व कार्य आज प्रेरणा का काम कर रहे है। इस मार्फत उन्हे श्रद्धासुमन!
-ः 5000 से भी अधिक कविताओं का जखीरा है श्री जौनसारी के पास।
-ः बच्चो के लिए भी 250 से अधिक कविताओं की रचना की है कवि जौनसारी ने।
-ः छः दशक से साहित्य साधना में लीन है कवि जौनसारी
-ः 80 के दशक में श्री जौनसारी द्वारा रचित कविताऐं देश की नामचीन ‘‘दून स्कूल’’ में पढाई जाती थी।
-ः विभत्स रस को छोड़कर सभी रसो में पद्य रचनाऐं की है।