गंगा के पानी में अब आया काफी सुधार - जलशक्ति मंत्री 

2019 की तुलना में गंगा के पानी में अब आया काफी सुधार - जलशक्ति मंत्री


 


क्या आप महान साधु और गंगा के  समर्पित पुत्र ज्ञानस्वरूप सानंद जी को जानते हैं?

 

अक्तूबर का महीना था। साल था 2018। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद 111 दिनों तक धरने पर बैठे रहे। गंगा को प्रदूषण मुक्त कराना चाहते थे। 111 दिनों के अनशन ने उन्हें इतना कमज़ोर कर दिया कि वे नहीं बच सके। वे प्रधानमंत्री को अपना छोटा भाई कहते थे और प्रधानमंत्री ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया था। 

 

स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद ने गंगा के लिए जितना कुछ किया है वो यहां नहीं नहीं कहा जा सकता। पत्रकारों से लेकर राजनेताओं को गंगा के मुद्दे पर शिक्षित किया। आई आई टी कानपुर में प्रोफेसर थे। बाद में सन्यास धारण कर साधु हो गए। इनके पूर्वाश्रम का नाम प्रोफेसर जी डी अग्रवाल था। 

 

जी डी अग्रवाल ने 22 जून 2018 से अनशन पर बैठने से पहले प्रधानमंत्री को दो पत्र लिखे थे। एक पत्र 24 फरवरी 2018 को और दूसरा पत्र 13 जुन 2018 को। तीसरा पत्र अनशन के दौरान लिखा था। एक का भी जवाब नहीं आया। वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने ज़रूर पत्र लिखा और अनशन तोड़ने की मांग की थी। कहा था कि उनकी सारी मांगे मान ली गई हैं। उनकी मृत्यु से दो दिन पहले केंद्र सरकार ने गंगा में प्रवाह को लेकर एक नोटिफिकेशन जारी किया था कि अलग अलग जगहों पर प्रवाह का स्तर एक खास मात्रा तक रहेगा। 

 

अपने पत्र में प्रोफेसर जी डी अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को लिखा था कि “आपके प्रधानमंत्री बनने से मुझे विश्वास है कि आप गंगा की सफाई के लिए कुछ करेंगे। इस भरोसे मैं साढ़े चार साल तक चुप रहा। मैंने अतीत में भी गंगाजी को लेकर कई अनशन किए हैं। मेरे अनशन के दबाव में मनमोहन सिंह जी ने लाहोरी नागपाला जैसा बड़ा प्रोजेक्ट रोक दिया था जो लगभग 90 प्रतिशत परा हो चुका था। सरकार को हज़ारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। फिर भी मनमोहन सिंह जी ने गंगाजी के लिए यह सब किया। गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक के क्षेत्र को पर्यावरण के लिहाज़ से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया ताकि यहां की गतिविधियों से गंगाजी को नुकसान न हो। 

 

मेरी उम्मीद थी कि आप उनसे दो कदम आगे जाकर करेंगे क्योंकि आपने गंगाजी के लिए अलग से मंत्रालय बनाया है। मगर चार साल में जो भी कदम उठाए गए उससे गंगा जी को फायदा नहीं हुआ। सिर्फ कोरपोरेट घरानों को फायदा होता दिख रहा है। अभी तक आपने गंगाजी से लाभ लेने के बारे में ही सोचा। 3 अगस्त को उमा जी आई थीं। मेरी बात नितिन गडकरी से कराई थीं लेकिन मैं आपसे जवाब चाहता था। मैं चाहता हूं कि आप गंगा जी के लिए ज़रूरी चार कदमों के बारे में फैसला लें। वरना मैं अपना जीवन दे दूंगा। “

 

मैंने पूरे पत्र का हिस्सा यहां पेश नहीं किया है। प्रो जी डी अग्रवाल के निधन की ख़बरों को इंटरनेट पर सर्च कर पढ़ सकते हैं। आपको पता चलेगा कि वे गंगाजी के लिए कितने समर्पित थे। गंगाजी के लिए जान देने की बात करते थे और जान दे दी। जब प्रो जी डी अग्रवाल का निधन हुआ तो ज्यादातर चैनलों ने इसे औपचारिक ख़बर बना कर छोड़ दिया। एक चैनल जो आज कल एक धर्म की नेतागीरी कर रहा है, उसने भी गंगाजी के लिए आजीवन समर्पित इस महान साधु के निधन को सामान्य ही समझा। गंगा कितनी साफ हुई यह अब प्रोपेगैंडा का मामला हो गया है। बनारस का ही एक डॉक्टर रोज़ गंगा के प्रदूषण की तस्वीरों को ट्विट करता रहता है। पोल खोलता रहता है। 

 

फिर भी हम सभी को लौट कर देखना चाहिए कि एक महान साधु गंगा को समपर्ति एक आत्मा ने जब 111 दिनों के लिए अनशन किया तब गंगा और साधु के नाम पर सांप्रदायिकता फैलाने वाली जमात कहां थी। वो क्यों चुप रही थी। मैं अपना बता सकता हूं। लेकिन तब मुझसे किसी ने पूछा बी नहीं था कि आप गंगा के सच्चे पुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के निधन पर चुप क्यों हैं? 111 दिनों के अनशन पर बैठने के बाद उनका निधन हुआ था, क्या वो सामान्य खबर थी?

 


किसी ने सवाल नहीं किया कि प्रधानंमत्री मोदी ने इस गंगा पुत्र के तीन पत्रों का जवाब क्यों नहीं दिया?

 

गंगा से संबंधित कुछ खबरें अगर आप पढ़ सकें तो-


 


डाउन टू अर्थ ने 28 अगस्त 2018 को लिखा था कि 2016 में राष्ट्रीय गंगा परिषद का गठन किया गया था। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री बनाए गए थे। दो साल में इसकी एक भी बैठक नहीं हुई थी। जबकि इसके गठन के आदेश पत्र में लिखा है कि साल में कम से कम एक बैठक तो होगी। 

 

2018 की आपको कई खबरें मिलेंगी जिसमें इस बात का ज़िक्र है कि गंगा प्रोजेक्ट का पूरा बजट खर्च नहीं हो पा रहा है। योजनाएं कागज़ पर ही हैं। 

 

4 जनवरी 2019 के फाइनेंशियल टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी है। नितिन गडकरी का बयान है। मार्च 2019 तक 80 फीसदी गंगा साफ हो जाएगा। किसी को पता नहीं मार्च 2019 तक गंगा 80 फीसदी साफ हुई है या नहीं। 

 

इसी रिपोर्ट में गंगा पुनरोद्धार मंतरी सत्यपाल सिंह के लिखित जवाब का ज़िक्र है। जो उन्होंने लोक सभा में दिया था कि नवंबर 2018 तक गंगा में 24,672 करोड़ के 254 प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इनमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, ग्रामीण स्वच्छता, घाटों के निर्माण, घाटों की सफाई, श्मशानों का विकास, औद्योगिक प्रदूषण में कमी, जैव विविधता, वनआच्छादन, नदी के सतह की सफाई वगैरह शामिल हैं। इसमें से 19,742 करोड़ की लागत से सीवेज की सफाई के प्रोजेक्ट चल रहे हैं। अभी तक 31 प्रोजेक्ट ही पूरे हुए हैं।

 

10 फरवरी 2020 की एजेंसी की खबर है कि जलशक्ति मंत्री रतन लाल कटारिया ने राज्य सभा में कहा है कि 2019 की तुलना में गंगा के पानी में काफी सुधार आया है। 27 जगहों पर आक्सीजन का स्तर अच्छा हुआ है। 42 जगहों पर BOD biological oxygen demand बेहतर हुआ है। 

 

सितंबर 2019 की खबर है कि देहरादून के वन्यजीव संस्थान ने एक एप बनाया है। जिसमें गंगा से संबंधित डेटा होगा। इसका इस्तमाल वैज्ञानिक करेंगे, गंगा प्रहरी स्वंयसेवी करेंगे और वन विभाग के कर्मचारी। गंगा प्रहरी के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। अगर आप किसी गंगा प्रहरी को जानते हों तो उसका हौसला बढ़ाते रहें। 

 

इसके बाद गंगा को लेकर ख़बरें आनी प्राय बंद हो जाती हैं। अचानक तालाबंदी के समय गंगा की खबरें फिर से आने लगती हैं. नमामि गंगे प्रोजेक्ट की सफलता के लिए नहीं बल्कि तालाबंदी से अपने आप साफ हुए पानी के लिए। 

 

गंगा पर बनी योजनाओं की सफलता अगर इतनी ठोस होती या सफल ही होतीं तो तालाबंदी के समय अखबारों को यह न लिखना पड़ता जो काम गंगा पर करोड़ों खर्चकर नहीं हुआ वो तालाबंदी से हो गया। पानी साफ नज़र आ रहा है।