|| आसान नहीं ||

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|| आसान नहीं ||


सबने कहा,
स्त्री को समझना आसान नहीं।
हां सही कहा, 
आसान हो भी कैसे सकता है।
ईश्वर की अनुपम कृति है स्त्री,
जगत की असीम शक्ति है स्त्री।
आखिर जो स्त्री कर पाती है, वो
और कौन कर सकता है। 
समझोगे भी तो कैसे,
कभी सुना ही नहीं उसे।
कैसे उसका दर्द बांट पाओगे,
आखिर उपहास की पात्र मात्र है,
तुम्हारी नज़र में।
या घर गृहस्थी तक सीमित रहने की, 
तुम्हारी सोच है उसके लिए।
तुम कोशिशें भी कर लो, तब भी
नहीं समझ पाओगे स्त्री को।
क्योंकि स्त्री तो महासागर है,
अनेक भावनाओं से बना महासागर।
उसमें मोह है, भय, निन्दा, प्रेम है,
वर्तमान को बनाये रखने का भविष्य है।
कैसे समझागे तुम ये सब,
कभी सुने हैं इसकी लहरों के स्वर,
या उतरे हो मन की गहराईयों में।
तो शायद न कहना पड़ता,
स्त्रियों को समझना कठिन है।
तुमने तो सदैव से उसे आर्कषण माना,
अपनी इच्छाओं को उसमें पहचाना।
मखमली बिछौना, 
और दिल बहलाने का खिलौना।
जज्बातों को खेल,
हर दिन कोई नया बहाना।
फिर खामोश रहने लगती है,
खुद को सबल करने में।
जब-जब शान्त होती है,
सब कुछ हां सब कुछ, अलग होने
लगता है।
आने वाले ज्वार की मानिंद,
जाने फिर क्या हो।
स्त्री को समझना आसान होता,
समझता जो उसकी भावनाओं को।



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