लाॅकडाउन है, लेना है तो लेले वर्ना..............

||लाॅकडाउन है, लेना है तो लेले वरना ............||


प्रातः 7 से 10 बजे के समय
 


कोराना वायरस के कारण लोग तरह तरह के अदृश्य जुल्मों के शिकार हो रहे है। जबकि सरकारे इतनी संवेदनशील हो चुकी है कि वे हर नागरिक का ख्याल रख रही है। 22 मार्च के अगले दिन जैस प्रधानमत्री ने देश को संबोधित किया कि वे कोरोना महामारी को समाप्त करने के लिए देश की जनता का सहयोग मांग रहे हैं कि अगले 21दिन तक लाॅकडाउन का समर्थन करेंगे। लोगो ने भी सहज ही इसे स्वीकार किया है और कर्फ्यू की स्थिति में आ गये।


साहब अब तो जनता कफ्र्यू है। सड़को पर निकलना कानूनी अपराध है। जब सरकारी आदेश के अनुसार प्रातः सात बजे से 10 बजे तक दुकाने खुलती है तो लोग इन दुकानो पर टूट पड़ते है। इतनी भीड़ की जनता कर्फ्यू की खाल तीन घण्टे में निकल जाती है। सवाल इस बात का है कि लोगो को मालूम भी है की यह वायरस मानव से मानव में फैलता है। बहुत ही खतरनाक संक्रमण है। फिर भी लोग अपनी करतूतो से बाज नहीं आ रहे है।


इस हालातो में लोगो के चरित्र अलग-अलग रूपों में सामने आ रहे है। कुछ लोग आर्थिक विपन्न लोगो को भोजन की व्यवस्था में जुटे है। कुछ लोग मौके का फायदा ऐसा उठा रहे हैं कि नमक, तेल, आटा, चावल और अन्य दैनिक खाद्य सामग्री को मुंहमांगे भाव पर बेच रहे है। कालाबाजारी चरम सीमा पर हो गई है।


देहरादून के भीड़-भाड़ वाले स्थानो धर्मपुर, प्रेमनगर, बंजारावाला, रायपुर, खुड़बुड़ा सीमा द्वार, कांवलीरोड़, व हनुमान चैक, पटेलनगर आदि स्थानो पर प्रातः सात बजे से 10 बजे तक आप इन हालातो से रू-ब-रू हो जायेंगे। लोगो ने बातचीत के दौरान बताया कि सरकार को पूर्ण कर्फ्यू की घोषण कर देनी चाहिए। जरूरी वस्तुओं को लोगो तक पंहुचाने बावत स्वयं सेवको की मदद लेनी चाहिए और वैकल्पिक व्यवस्था सरकार को बनानी चाहिए। 


इस दौरान जो सर्वाधिक प्रभावित हुए है वे दैनिक मजदूर है। वे प्रातः अपनी दिनचर्या के मुताबिक घर से निकलते थे, सांयकाल को अपने परिवार के लिए खाद्य सामग्री खरीदकर घर लौटते थे। इसके अलावा जो मजदूर या दैनिक श्रमजीवी हैं, मासिक किराय के मकान में रहते है। कोई मासिक वेतन नहीं है। ऐसे परिवारो के सामने बहुत बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। वे ना तो अपना दुखड़ा किसी के सामने बता पा रहे हैं, और ना ही कोई उनकी समस्या पर गौर कर रहा है। उनके सामने एक तरफ आर्थिक संकट खड़ा है और दूसरी तरफ कोरोना वायरस के शिकार ना हो। कुलमिलाकार मध्यम और मझौले परिवारों के सामने खाद्य सामग्री और अन्य आर्थिक संकट आन पड़ा है। वे सिर्फ इन्तजार कर रहे हैं कि जनता कफ्र्यू खुलता है तो वे फिर से अपनी दिनचर्या आरम्भ कर सकते है। वर्ना वे आशंकित है कि जनता कफ्र्यू का समय बढता है तो वे कोरोना से पहले आर्थिक बोझ तले दबकर इस दुनियां को विदा कह देंगे।   


जनता कर्फ्यू के कारण सरकार ने आवश्यक वस्तुओं बावत प्रति दिन प्रातः सात बजे से 10 बजे तक सब्जी व अन्य दुकानो को खोलने का ऐलान किया हुआ है। अब हालात इस कदर हो गये हैं कि व्यापारी, लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए मनमर्जी की कीमत से राशन इत्यादि को बेच रहे है। जो 10 किलो का आटे का बैग जनता कफ्र्यू से पहले 260 रूपये का था वह अब 360 रू॰ का हो गया है। आप मोलभाव पूछ नहीं सकते है। वर्ना आपको खाली हाथ ही घर लौटना पड़ेगा।
  
बता दें कि सड़को पर सर्वाधिक किस प्रकार के लोग दिखते है। फड़वाला, ठेली वाला, दैनिक मजदूर, दैनिक वेतनभोगी और वे कामकाजी लोग जो प्रातः घर से निकलते हैं और बिना मोटर-गाड़ी जैसे संसाधनों के वापसी करते हैं। इन लोगो के कारण सड़को और दुकानो पर कितनी भीड़ लगती होगी यह अन्दाज लगाया जा सकता है। इसके अलावा सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारी भी इस भीड़ का हिस्सा होते है। अब इस भीड़ के साथ-साथ मोटर-वाहन भी होते है। तो बाजार व सड़को पर चकाचैंद रहना लाजमी है। वर्तमान में कोरोना महामारी के कारण लाॅकडाउन के चलते सड़के सुनी रह रही है। मगर व्यापारियों की जेबे पहले की अपेक्षा दुगुनी गरम हो रही है।


10 बजे के बाद -