||जीवन की आधार शिला||
जब मैं जन्मा इस धरती पर, इसका हरदम साथ मिला।
कहते है परिवार इसी को, जीवन की आधार शिला।।
तब मैं अबोध, असहाय बालक था, खुद से भी था अन्जाना,
रोना, हंसना, और सो जाना, बस इतना ही अफसाना।
बालपन की उन इच्छाओं को, बिन बोले ही जान लिया,
कहते हैं परिवार इसी को, जीवन की आधार शिला।।
इससे मिलकर ही बन पाया, सामाजिक ताना-बाना,
कौन है अपना, कौन बेगाना, इक-दूजे को पहचाना।
पे्रम, त्याग, तप, सहनशीलता, दया-करूणा और परोपकार,
सीखा हमने इस जीवन में, कैसे करना है सत्कार।
अद्भुत, अनोखी सीख मिली, ज्ञान का भण्डार मिला,
कहते हैं परिवार इसी को, जीवन की आधार शिला।।
वक्त ने जैसे करवट बदली, यौवन पर आया निखार,
बाहरी दुनिया देखने को अब, पंख भी अपने लिए पसार।
मेरी हर नादानी को, बस इसने ही संभाल लिया,
बाहर-भीतर की दुविधा को, घर के मोह ने थाम लिया।
रिश्तों का अद्भुत संगम है, नहीं किसी से कोई गिला,
दादा-दादी, नाना-नानी, हर रिश्ते का प्यार मिला।
कहते हैं परिवार इसी को, जीवन की आधार शिला।।
यह कविता काॅपीराइट के अंतर्गत आती है, प्रकाशन से पूर्व लेखिका की संस्तुति अनिवार्य है।