प्रौढ़ावस्था में कटी साक्षरता की फसल
स्नेहदीप रावत
नयार घाटी ग्राम स्वराज्य समिति बाड़ियूँ जिला पौड़ी गढ़वाल ने महिला संगठनों की भागीदारी से "महिला साक्षरता एवं शिक्षण' केन्द्रों का संचालन माह जुलाई 2012 से शुरू कियासंस्था के कार्यकर्ताओं ने गाँव-गाँव में जाकर चर्चा की। जिन गाँवों में महिलाओं के लिए साक्षरता केन्द्रों की आवश्यकता महसूस हुई, वहाँ सर्वेक्षण किया। उसके बाद गाँवों में गोष्ठियाँ की गयी। इन गोष्ठियों में चर्चा के उपरान्त महिला साक्षरता केन्द्रों के लिए संचालिकाओं का चुनाव किया गया। संचालिकाओं ने उत्तराखण्ड महिला परिषद्, अल्मोड़ा में प्रशिक्षण लिया और माह जुलाई 2012 से महिला साक्षरता एवं शिक्षण केन्द्रों की शुरूआत हुई।
ग्राम काण्डी, कुठार, ग्वाड़ी और हथनूड़ में महिला साक्षरता केन्द्रों की शुरूआत की गयी। इसमें से कुछ गाँवों में तो शुरू से ही काफी तेजी के साथ साक्षरता प्राप्त करने की होड़ लग गयी। जब इण्टर कालेज किनसूर में अभिभावक संघ की गोष्ठी के दौरान हथनूड़ गाँव की महिलाओं ने अंगूठे लगाने के स्थान पर हस्ताक्षर किए तो प्रधानाचार्य श्री देवी लाल जी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने कहा कि संस्था ने वास्तव में महिलाओं को शिक्षित करके सही मायने में विकास का काम किया है। इस बीच एक केन्द्र को ग्राम कुठार से ग्राम तैड़ी में बदला गया। कार्यक्रम के शुरूआती दौर में ही ग्राम तैड़ी के संगठन की अध्यक्षा जी के पैर की हड्डी टूट गयी। फिर भी, उन्होंने साक्षरता का संपूर्ण पाठ्यक्रम बिस्तर में लेटे हुए ही पूरा किया। वे अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करती रहीं। अन्य महिलाओं ने भी नियमित रूप से बिना कोई दिन गवाँये केन्द्र में आना जारी रखा ना तो संचालिका को आराम से बैठने दिया ना खुद ही हाथ पर हाथ धर कर बैठी रहीं।ग्राम ग्वाड़ी में कुछ महिलाओं ने काफी प्रयास करके बहुत ही अच्छा परिणाम हासिल किया लेकिन कुछ बहनें अनियमित रहने की वजह से वांछित मुकाम हासिल नहीं कर पायीं। काण्डी गाँव की बहनों ने तो एक अनोखा तरीका आजमाया। वे खेतों में फसल बोने-काटने और मजदूरी के काम में व्यस्त रहती थीं। केन्द्र में कम समय के लिए आती थीं। बावजूद इस बंधन के, वे मनरेगा में मजदूरी के दौरान पत्थरों पर लिखती रहतीं। इसी प्रकार घास व लकड़ी इकट्ठा करने के लिए आते-जाते वक्त रास्ते में जहाँ एक महिला घास काटने का हथियार तेज करती तो दूसरी साक्षरता की धार को आजमा लेती। रात को बच्चे गृहकार्य करते तो स्वयं भी उन के साथ पढ़तीं। महिलायें अपनी जरूरत के अनुसार शब्दों में मात्रायें लगाना, चित्र देखना व बच्चों के साथ-साथ पढ़ने का आनन्द प्राप्त करतीं। श्रीमती विधाता देवी अनुसूचित जाति की महिला हैं। वे कहती हैं कि "बच्चे कभी कुछ काम करने को कहते लेकिन मेरा मन पढ़ने को होता, मैं पढ़ाई में ही लगी रहती। अभी तो साक्षरता में बोई फसल को काटना है और देखना है कि किसने कितनी मेहनत की हैअब ये भी देखना होगा कि फसल के कटने पर हमारा परिवार और गाँव कितना खुशहाल होगा।" महिलायें जहाँ घर, खेती, परिवार, पति, बच्चों को एक साथ जोड़कर रखने की कवायद में जुटी हैं, वहीं साक्षरता कार्यक्रम के माध्यम से अपना मान-सम्मान भी बढ़ा रही हैं।