नीरमहलः रुद्रसागर झील पर बना अद्भुत जल महल

|| नीरमहलः रुद्रसागर झील पर बना अद्भुत जल महल|| 



पूर्वोत्तर का नाम लेते ही हमारे सामने हरियाली से भरपूर और वरुण देवता की मेहरबानी से सराबोर ऐसे क्षेत्र की तस्वीर सामने आ जाती है जिसे शायद प्रति का सबसे अधिक लाड़ एवं दुलार मिला है। यहाँ आसमान छूने की होड़ करते बांस के जंगल हैं तो घर-घर में फैले तालाबों में अठखेलियाँ करती मछलियाँ । देश के दूसरे राज्यों से यह 'अष्टलक्ष्मी' इस मामले में अलग है कि यहाँ धरती के सीने पर गेंहू और चने की फसलें नहीं बल्कि कड़कदार चाय की पत्तियां लहलहाती हैं और ऊँचे ऊँचे बांस के जंगल इठलाते हैं । यहाँ की धरती कभी अपनी बांहों में पानी समेटकर धान सींचती है तो कहीं मछलियों के लिए तालाब बन जाती है। 


वैसे प्राकृतिक सौन्दर्य के अलावा भी यहाँ बहुत कुछ है जो अब तक या तो अनछुआ है या फिर प्रचार-प्रसार के मामले में दूसरे राज्यों से पीछे रह गया है,ऐसा ही एक अविस्मरणीय स्थान है त्रिपुरा का 'नीर महल' जिसे सरल शब्दों में जल महल भी कहा जा सकता है। देश में जब भी जलमहल जैसी किसी अद्भुत ति की चर्चा होती है तो वह राजस्थान के जलमहल तक सिमटकर रह जाती है और कई बार मध्यप्रदेश के मांडू में बने जहाज महल तक आ पाती है लेकिन त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से महज 53 किलोमीटर दूर मेलाघर इलाके में स्थित नीरमहल को लेकर न तो ज्यादा पढ़ने-सुनने को मिलता है और न ही पर्यटन पर केंद्रित वेबसाइट इसकी गाथा सुनाती हैं इसलिए राजस्थान और मध्य प्रदेश की तुलना में यहाँ पर्यटक भी कम आ पाते हैं।


नीरमहल दरअसल में त्रिपुरा साम्राज्य के राजा वीर विक्रम (बांग्ला भाषा में बीर बिक्रम) किशोर माणिक्य बहादुर द्वारा रुद्रसागर झील के मध्य में निर्मित एक शाही महल है। बताया जाता है कि इसका निर्माण 1930 में शुरू हुआ था और इस जहाजनुमा भव्य महल कोपूरा करने में तकरीबन 8 साल का समय लग गया तथा 1938 में हिंदू और मुस्लिम वास्तुशिल्प शैली पर आधारित यह महल अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ शाही परिवार के ग्रीष्मकालीन आवास के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। इस आलीशान महल के निर्माण का दायित्व ब्रिटिश कंपनी मार्टिन और बर्न्स को दिया गया था।



जानकारों का कहना है कि यह महल भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा और पूर्वी भारत में इस शैली का इकलौता महल है । महल में कुल 24 कमरे हैं महल मुख्य तौर पर दो भागों में विभाजित है। महल के पश्चिमी भाग को अंदर महल या महल के अंदरूनी हिस्से के तौर पर जाना जाता है। इस भाग में शाही परिवार के सदस्य आकर ठहरते थे, जबकि महल के पूर्वी भाग को ओपन एयर थियेटर या मुक्ताकाश मंच कहा जाता था। बताया जाता है कि इस भाग में महाराजा और शाही परिवार के सदस्यों के मनोरंजन के लिए नाटक, रंगमंच, नृत्य और अन्य सांस् तिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे।


नीरमहल को इतने नियोजित ढंग से बनाया गया है कि महल की सीढ़ियां सीधे रुद्रसागर झील के तट पर निकलती हैं और बाहर से कोई यह समझ भी नहीं सकता कि शाही परिवार झील का लुत्फ लेने के लिए नीचे उतरा है । जानकारों का यह भी कहना है कि अपने स्थायी आवास अगरतला के 'उज्ज्यंत महल' से महाराज और शाही परिवार राजघाट से हाथ से चलने वाली नाव में बैठकर इस नीरमहल में आते थे।


रुद्रसागर झील में आमतौर पर भरपूर पानी रहता है लेकिन बरसात के दिनों में यह पानी से लबालब भर जाती है और तब ऐसा लगता है जैसे पानी पर सफेद रंग में रंगा कोई खूबसूरत जहाज़ तैर रहा हो। सर्दियों के दौरान रुद्रसागर झील में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी डेरा डाल लेते हैं और तब इस झील और नीरमहल को देखना सचमुच आनंददायक होता है। वैसे पर्यटकों को लुभाने के लिए आजकल जुलाई- अगस्त के दौरान यहाँ एक नौका दौड़ भी आयोजित की जाने लगी है। कुल मिलाकर यदि आप कभी पूर्वोत्तर से रूबरू होने का मन बनाते हैं तो त्रिपुरा में नीरमहल ज़रूर देखिये तभी आप समझ पाएंगे कि रुद्रसागर झील के जल से अठखेलियाँ करता यह महल अपने आप में कितनी विशेषताओं को समेटे है।


स्रोत - समाचार भारती, समाचार सेवा प्रभाग, आकाशवाणी