हनुमान गंगा
बन्दरपूंछ हिमशिखर से एक महत्वपूर्ण जल धारा निकल कर हनुमानचट्टी के पास यमुना नदी में समाहित होती है जिसे हनुमान गंगा कहते हैं। हनुमान गंगा के यमुना नदी में मिलने के बाद यमुना नदी का जल लगभग दोगुना हो जाता है। बन्दरपूंछ हिमशिखर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि लंका दहन के बाद हनुमान ने अपनी जलती पूंछ की जलन को इस हिमशिखर के शीतल जल से शान्त किया थायमुना महाभारत तथा पुराणों में कालिन्दी नाम से भी प्रसिद्ध है। इस कारण बन्दरपूंछ के निकटस्थ एक अन्य शिखर का नाम कलिन्द पर्वत भी है।
उत्तराखण्ड की भूमि में हनुमान जी के आने के बारे में एक मान्यता यह भी है कि लक्ष्मण-मेघनाथ युद्ध के दौरान लक्ष्मण को शक्ति लगने पर हनुमान संजीवनी बूटी लेने जब हिमालय क्षेत्र में आये तो सर्वप्रथम यमुना घाटी में ही रुके, जिस कारण हनुमान गंगा एवं यमुना के संगम स्थल को हनुमानचट्टी नाम से जाना गयायमुना घाटी के बाद हनुमान अलकनन्दा घाटी के द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लेकर लंका लौटे।
हनुमान गंगा के दोनों छोरों पर साहसिक पर्यटकों के लिए पथारोहण तथा पर्वतारोहण के कई आकर्षक विकल्प उपलब्ध हैं।
स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा रचित 'विश्व धरोहर गंगा'