||अमृत गंगा - बालखिल्य नदी||
गोपेश्वर से 12 किमी. दूरी पर मण्डल एक छोटा सा कस्बा है। प्रकृति के सौन्दर्य से परिपूर्ण मण्डल से दक्षिण पूर्व दिशा में लगभग 5 किमी० की दूरी पर सती अनुसूया माता का मन्दिर है।
मंदिर से लगभग 2 किमी० की दूरी पर अनुसूया माता के पति अत्रिमुनि की गुफा हैलोक मान्यता है कि ऋषि जब गुफा में तप में लीन थे, तो उन्हें प्यास लगी, यहां पानी न होने पर सती माता ने अपने तपोबल से गंगा की एक धारा को यहां अवतरित करवाया, जिसे अमृत गंगा कहा जाता हैअमृत गंगा अत्रिमुनि आश्रम की पहाड़ियों से अवतरित होकर इस स्थान पर झरने के रूप में गिरती है। श्रद्धालु चट्टानों के सहारे अमृत गंगा की परिक्रमा कर पुण्य प्राप्त करते हैं। अमृत गंगा ही एकमात्र ऐसी गंगा है, जिसकी वास्तविक परिक्रमा सम्पन्न होती है।
मण्डल के समीप ही व्योमकेश महादेव का प्राचीन शिव मन्दिर स्थित है। यहां पर अमृत गंगा बालखिल्य पर्वत से निकलने वाली जलधारा बालखिला नदी से मिल जाती है। बालखिला नदी के अवतरण के बारे में ऋषि बालखिल्य के तप की जनश्रुति जुड़ी है। टिहरी जनपद में इसी नाम से बालखिल्य ऋषि प्रसंग से नदी का नाम भी है। यह संगम स्थल व्योमकेश संगम नाम से जाना जाता है। संगम स्थल के मध्य टापू को ऋषिटीला कहते हैं। आगे चलकर बालखिला नदी kothiyalsain के समीप अलकनन्दा में समाहित हो जाती है।
बालखिल्य नदी
पीपलकोटी के बाद वीरी घटगाड़ और खन्यूरी गाड़ अलकनन्दा नदी में मिलती है। बालखिल्य नदी मठ्याणा-चमोली के बीच कोठियालसैंण के समीप अलकनन्दा में मिलती है। मण्डल क्षेत्र से आने वाली इस जलधारा का मूल स्रोत तुंगनाथ का पूर्वी और रुद्रनाथ का दक्षिणी-पश्चिमी ढाल है। यहां से निकलने वाली कई अन्य जलधाराएं बालखिल्य में मिल जाती हैं। इनमें अमृतगंगा, वीरगंगा, औंस गाड, गावनी गधेरा, भौंरासी गधेरा, भृगु गंगा, देवरा गाड़, पसोली गाड़ प्रमुख हैं। बालखिल्य की मुख्य सहायक सरोली गाड़ है, जो चनगवड़ व सगडू के मिलने से बनी है। जब तुंगनाथ-रुद्रनाथ क्षेत्र में भारी वृष्टि होती है, तो इन जलधाराओं में अपार जल प्रवाहित होने लगता है। व्योमप्रयाग तीर्थ में बालखिल्य से सगर जलधारा मिलती है। इसके बाद यह नदी पश्चिम दिशा को चापाकृति में बहती है व पुनः पूर्व दिशा में बहते हुए अलकनन्दा में मिल जाती है।
स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल निशंक की किताब ''विश्व धरोहर गंगा''