(द्वारा - वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 12)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-
||जलग्रहण विकास में सम्बद्ध विभागों के एकीकृत प्रयास||
जलग्रहण विकास योजनाओं के सम्बन्ध में ग्रामीण क्षेत्रों में विकास से सम्बन्धित समस्त प्रकार के राजकीय विभागों जैसे-जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग, कृषि विभागब, उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, पशुपालन विभाग, समाज कल्याण विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग, प्राथमिक शिक्षा/सर्व शिक्षा अभियान तथा स्थानीय स्तर पर कार्यरत गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा क्रियान्वित की जा रही विभिन्न प्रकार की योजनाओं एवं अनुदानों / सहायता का प्राथमिकता के आधार पर जलग्रहण क्षेत्र में क्रियान्वयन किया जाना चाहिए, जिससे कि चयनित क्षेत्र प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें एवं आस-पास के क्षेत्रों हेतु विकास के एक माडल के रूप में प्रदर्शित होवें। प्रायः यह देखा जाता है कि भिन्न-भिन्न विभाग मापदण्डों के आधार पर अपने-अपने विभाग से सम्बन्धित योजनाओं का क्रियान्वयन मात्र लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु करते हैं। संविधान के 73 वें संशोधन की मूल भावना के अनुसार जिला परिषद, पंचायत समिति, ग्राम पंचायत स्तर पर 29 विषयों को हस्तान्तरित किये जाने का निर्णय लिया गया है एवं इस निर्णय की अनुपालना में विभिन्न विभागों के कार्यालयों, कर्मियों, निधियों एवं कार्यकलापों का नियन्त्रण जिला परिषदों के अधीन किया जा चुका है। इस व्यवस्था से ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहें गरीब, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के तबके के लोगों को रानी स्तर पर आवश्यकतानुसार सुविधांएं प्राप्त हो रही है एवं आवश्यकता आधारित कार्य योजना, जिसमें जन सहभागिता को जोड़कर कार्य करने का विशिष्ट महत्व है, तैयार कर कार्य कराये जा रहे हैं। जिला परिषद एवं पचायंत समिति स्तर पर विभिन्न प्रकार की समितियाँ गठित हैं, जिनमें विभिन्न विभागों के अधिकारी एवं कर्मचारी मनोनीत किये गये है। इन समितियों की नियमित बैठकों में नीतिगत निर्णय लिये जाते हैं, योजनाओं की प्रगति की समीक्षा की जाती है। इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित किया जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वागीण विकास के लक्ष्य को प्रयान में रखते हुए समस्त विभाग एकजुट होकर अपने-अपने संसाधनों एवं योजनाओं का क्रियान्वयन एकीकृत रूप से करें। जलग्रहण विकास प्रबन्धक में ग्रामीण विकास से जुडे़ भिन्न-भिन्न विभागों द्वारा कराये जा रहे कार्यो तथा किसानों को देय सुविधाओं/सहायताओं का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है, जिससे कि प्रयोगिक जानकारी प्राप्त हो सके एवं विभिन्न विभागों की गतिविधियों को समेकन के आधार पर जलग्रहण क्षेत्र विकास में अपनाये जाने पर बल दिया जावे। इससे निश्चित रूप से जलग्रहण के समग्र विकास की आवधारणा फलीभूत होगी।
भारत सरकार द्वारा जारी नई कामन मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण के सम्बन्ध में विस्तृत परियोजना रिपार्ट ( डी. पी. आर ) जिला संदर्शी योजना के समनुरूप होगी। राष्ट्रीय जलग्रहण रोजगार गांरटी योजना ( एन. आर. ई. जी. एस. ) पिछडें क्षेत्रों की अनुदान निधि ( बी. आर. जी. एफ. ) तथा भू जल की कृत्रिम पुनः भराई के अन्तर्गत मृदा तथा नमी के सरंक्षण से सम्बन्धित अनुमत्य कार्यो को लघु जलग्रहण योजना का संपूरक होना चाहिए। जिला संदर्शी योजनाओं को तैयार करते समय जिला कृषि योजनाओं को भी ध्यान में लिया जाएगा।
11 वी. पंचवर्षीय योजना में विभिन्न योजनाओं और कार्याक्रमों, विशेषरूप से भारत निमार्ण के तहत योजनाओं और कार्योक्रमों तथा अन्य प्लेगशिप योजनाओं के संसाधनों को जलग्रहण विकास परियोजनाओं के साथ समेकित और समुलित करने हेतु एक अवसर का प्रस्ताव किया गया है। जिला स्तर पर योजनाओं को अनिवार्यतः तैयार किए जाने से बुनियादी स्तर पर समेंकन और सहक्रियाएं की जा सकेंगी। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में पूरी की जाने वाली कमियों अथवा पिछडा़ क्षेत्र अनुदान निधि, ( बी. आर. जी. एफ. ) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना ( एन. आर. ई. जी. एस. ) से हटाकर शुरू किए जाने वाले जलग्रहण कार्यकलापों, भू जल की कृत्रिम पुनः भराई टैंको, जल स्त्रोतांे तथा किन्ही अन्य उपलब्ध स्त्रोतों के नवीकरण और मरम्मत कार्यो का विस्तृत रूप उल्लेख किया जा सकता है। संशोधित ए. पी. एम. पी. अधिनियम के अन्तर्गत विपणन और मूल्यवर्द्धन भी संभव है। परियोजना स्तर पर सभी संगत योजनाओं को समेकित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
विभिन्न प्रमुख विभागों द्वारा देय सुविधाओं का विवरण निम्नानुसार हैं-
12.2 कृषि विभाग द्वारा कृषकों को देय सुविधाएं ( )
कृषि के उन्नत तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु कृषि विभाग द्वारा कई कार्यक्रम क्रियान्वित किये जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों के तहत कृषकों को दी जा रही सुविधाओं का सक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-
अमूल्य नीर योजना: राज्य सरकार द्वारा अमूल्य नीर योजना के तहत उपलब्ध जल के सदुपयोग हेतु फव्वारा व डिप द्वारा सिंचाई तथा पाइप लाइन को बढावा दिया जा रहा है। इन योजनाओं का सरलीकरण कर कृषक मित्रवत बनाने का प्रयत्न किया गया है।
फव्वारा सिंचाई के लाभ: 30-40 प्रतिशत पानी की बचत, बिजली की बचत, बिजली की दर में कमी, क्यारी-धांरे बनाने की झंझट नहीं, ढालू खेतों में भी सिंचाई सम्भव।
अनुदान प्रक्रिया का सरलीकरण
- फव्वारा सैट की दरें विभाग द्वारा तय नहीं की जाती हैं इसलिए 8 से 10 फव्वारा सैट विक्रेताओं/डीलर्स से मोलभाव करेंव कीमत कम से कम करवायें।
- अच्छी गुणवत्ता का आई. एस. आई. मार्का फव्वारा सैट ही खरीदें। किसी भी पंजीकृत निर्माता के ब्राण्ड या मैक का फव्वारा सैट खरीद सकते हैं।
- फव्वारा सैट की कीमत का अनुदान राशि से कोई सम्बन्ध नहीं है।
- पास बुक या पुरानी जमाबंदी की फोटों प्रति ही पर्याप्त। नवीनतम जमांबदी की जरूरत नहीं।
- पटवारी की रिपोर्ट या नक्शा ट्रेश की जरूरत नहीं।
- फव्वारा सैट खरीदने से पूर्व कृषि विभाग में पंजीयन की जरूरत नहीं।
- केवल एक पृष्ठ का सरल आवेदन-पत्र। कृषि कार्यालय, फव्वारा डीलर के यहाँ उपलब्ध।
- आवेदन-पत्र स्वयं कृषक या डीलर या कृषि विभाग के कार्मिक के माध्यम से जमा कराने की सुविधा।
- अनुदान राशि का तुरन्त भुगतान ड्राप्ट द्वारा सीधे किसान को।
फव्वारा माडल (हैक्टेयर ) | सभी कृषकों हेतु देय अनुदान ( रूपये ) | ||
63 एम. एम. | 75 एम. एम. | 90 एम. एम. | |
0.5 | 3950 | 4100 | 0.00 |
1.0 | 7150 | 7150 | 7500 |
2.0 | 8500 | 8850 | 10600 |
3.0 | 10900 | 11300 | 13450 |
4.0 | 12900 | 11300 | 15450 |
5.0 | 15050 | 15500 | 18300 |
ड्रिप संयत्र पर देय अनुदान
अंतराल (मीटर) | क्षेत्रफल ( हैक्टेयर में ) | |||||
0.40 | 1.00 | 2.00 | 3.00 | 4.00 | 5.00 | |
12/12 | 6095 | 9603 | 14490 | 18745 | 30878 | 40998 |
10/10 | 6958 | 10350 | 15928 | 20700 | 33293 | 44218 |
9/9 | 7130 | 12708 | 20413 | 32143 | 35305 | 46633 |
8/8 | 7418 | 11443 | 17998 | 23978 | 37663 | 49565 |
6/6 | 8280 | 17365 | 29440 | 40423 | 60835 | 79005 |
5/5 | 8683 | 18860 | 32545 | 47783 | 67333 | 86710 |
4/4 | 9718 | 22598 | 36283 | 57903 | 81765 | 103098 |
3/3 | 10293 | 20470 | 41055 | 55258 | 75210 | 91023 |
3/1. 5 | 11328 | 23115 | 46288 | 63078 | 84008 | 104018 |
2.5/2.5 | 11500 | 22885 | 46805 | 63940 | 114713 | 137770 |
2/2 | 12248 | 28635 | 49680 | 70553 | 94818 | 128455 |
1.5/1.5 | 15008 | 31625 | 62963 | 94933 | 118393 | 161575 |
1/1 | 15238 | 33120 | 55488 | 84238 | 114943 | 143290 |
ड्रिप एवं फव्वारा संयत्र पर देय अनुदान की अधिकतम सीमा 50 हैक्टेयर मॅाडल होगी।
पाइप लाइन पर देय अनुदान
क्र. सं. | पाईप लाईन मी. | देय अनुदान | |||
सामान्य कृशक | लघु/सीमांत/अजा/अजजा/महिला | ||||
एच. डी. पी. ई. पाईप | पी. वी. सी. पाईप | एच. डी. पी. ई. पाईप | पी. वी. सी. पाईप | ||
1 | 210 मी. तक | 15 रू/मी. या अधिकतम (रू.) 3150 | 13 रू/मी. या अधिकतम (रू.) 2700 | 25 रू/मी. या अधिकतम (रू.) 5200 | 22 रू/मी. या अधिकतम (रू.) 4600 |
2 | 210 मी. तक | 15 रू/मी. या अधिकतम (रू.) 3150 | 13 रू/मी. या अधिकतम (रू.) 2700 | 25 रू/मी. 210 मी. तक तथा इससे ऊपर15 रू/मी. या अधिकतम (रू.) 8000 | 22 रू/मी. 210 मी. तक तथा इससे ऊपर 13 रू/मी. या अधिकतम (रू.) 7000 |
पाइप लाइन पर अनुदान की अधिकतम सीमा 400 मीटर होगी।
डिग्गी-फव्वारा पर देय अनुदान: 4 लाख लीटर क्षमता की डिग्गी बनाने पर किसान को 20.000 रू, 6 लाख लीटर क्षमता की डिग्गी बनाने पर 30.000 रू. व 8 लाख लीटर क्षमता की डिग्गी बनाने पर 40.000 रू. तथा डिग्गी पर फव्वारा हेतु 4.000 रू. पम्पसेट हेतु 3.000 रू. अनुदान देय है।
- आइसोपाम योजना में दलहन, तिलहन एवं मक्का की फसलों की विभिन्न किस्मों के प्रमाणित बीज मिनीकिट्स निःशुल्क वितरित किये जाते हैं।
- प्रत्येक मिनीकट में दलहनी फसलों जैसे मूँग, उड़द, मोठ, अरहर, मसूर, ग्वार, चावल के 4 क्रि.ग्रा. चना 8 क्रि.ग्रा. तिलहनी फसलों जैसे सोयाबीन में 8 क्रि.ग्रा. मूँगफली में 20 क्रि.ग्रा., अरण्डी में 2 क्रि.ग्रा. तिल में 1 क्रि.ग्रा व सरसों व तारामीरा का 2 क्रि.ग्रा. बीज दिया जाता है। प्रत्येक मिनीकट में कल्चर पैकेट व साहित्य भी होता है।
फामर्स फील्ड स्कूल आधारित फसल प्रदर्शन
- कार्य योजना के अन्तर्गत मोटे अनाज वाली दो या दो से अधिक फसलों के 0.4 हैक्टेयर क्षेत्र में उत्पादन तकनीक के सम्पूर्ण फसल चक्र, प्रदर्शन हेतु आदानों की वास्ताविक कीमत या अधिकतम 2.000/ रूपये एवं एक फसली प्रदर्शन के लिए 1.000/ रूपये अनुदान देय है।
- आईसोपाम योजना के अन्तर्गत तिलहनी, दलहनी तथा मक्का फसलों के 5.0 हैक्टेयर क्षेत्र के वृहद प्रदर्शन आयोजित करने पर आदानों के वास्ताविक व्यय का 50 प्रतिशत या अधिकतम मूँगफली 4.000/ सोयाबीन 3.000/ तिल, अरण्डी, कुसुम व रामतिल 1.500/ सूरजमुखी 2.500/ राजमा 3.500/ चना व मटर 2.500/ मसूर 2.200/ तथा मक्का फसल के लिए 4.000/ रूपये प्रति हैक्टेयर अनुदान देय है।
- मूँगफली फसल में पोलीथीन मल्च तकनीक के 5 हैक्टेयर क्षेत्र के वृहद प्रदर्शन आयोजन हेतु रूपये 7.000/ ( 4.000/ रूपये फसल तकनीक प्रदर्शन 3.000/ रूपये पोलीथीन मल्च बिछावन प्रदर्शन हेतु प्रति हैक्टेयर या आदानों की वास्ताविक कीमत जहाँ भी कम हो देय है।
फारमर्स फील्ड स्कूल आधारित फसल प्रदर्शन प्रशिक्षण
कार्य योजना ( मोटे अनाज, गेहूँ फसल ) प्रति 5 फसल प्रदर्शन (2 हैक्टेयर क्लस्टर क्षेत्र ) आइसोपाम योजना ( तिलहन, दलहनी एवं मक्का फसल ) प्रति 5 फसल प्रदर्शन ( 5 हैक्टेयर काॅमपैक्ट क्षेत्र ) पर फसल की विभिन्न क्रान्तिक अवस्थाओं पर चार बार एक दिवसीय फसल प्रदर्शन प्रशिक्षण एवं फसल पकने की अवस्था में एक फील्ड-डे के आयोजन हेतु राशि रूपये 4.000/ तक व्यय किये जाने का प्रावधान है।
बीज उत्पादन से जुड़ने की सुविधा:- जिन कृषकों के पास स्वयं जमीन व सिंचाई के साधन हैं वे कृषक राज्य बीज निगम के अपने नजदीक के कार्यालय में अपना पंजीकरण करा सकते हैं। बीज उत्पादन हेतु कृषकों को विभाग एवं उत्पादक संस्थाओं के माध्यम से प्रशिक्षित भी किया जाता है।
प्रमाणित बीज उत्पादन ( बीज गाँव योजना )
- कार्य योजना के तहत खाद्यान्न फसलों के प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु उत्पादन लागत का 25 प्रतिशत अधिकतम 200 रू. प्रति क्विंटल बीज, सहायता देय है। इस राशि का 50 प्रतिशत कृषकों को एवं शेष 50 प्रतिशत राशि बीज उत्पादक संस्था को ( परिवहन, रेगिंग, बीज की सफाई आदि के लिये ) देय है।
- आइसोपाम योजना के तहत दलहनी, तिलहनी एवं मक्का फसल के प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु रू. 500/ प्रति क्विंटल बीज की दर से वित्तीय सहायता देय है। इस राशि रू. 500/ में से रू. 125/ बीज उत्पादक संस्था को बीज विधायन, रेंगिगं, परिवहन आदि हेतु एवं रू. 375 / बीज उत्पादक कृषक को देय है।
- सघन कपास विकास योजना के तहत प्रमाणित बीज उत्पादन पर उत्पादन लागत का 25 प्रतिशत अथवा रू. 1.500/ प्रति क्विंटल अीज की दर से वित्तीय सहायता देय है।
- उक्त सहायता बीज उत्पादक संस्था के माध्यम से बीज उत्पादक कृषकों को उपलब्ध करायी जाती है
- सूक्ष्म तत्व प्रदर्शन: सूक्ष्म तत्व उर्वरकों की कीमत पर अधिकतम अनुदान 200/रू. प्रति हैक्टेयर देय है।
पौध संरक्षण कार्यक्रम
- तरल पौध संरक्षण रसायन में कीमत का 50 प्रतिशत या 200/ रू. तथा पाउडर पर लागत का 50 प्रतिशत या 100/ रू. में से जो भी कम हो। कीट/रोग के व्यापक प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण हेतु यह अनुदान प्रति हैक्टेयर देय है।
- बायोएजेन्ट्स एन. पी. वी. (एच) द्वारा चना एवं अरहर में कीट निंयत्रण हेतु 250/ रू. प्रति हेक्टेयर या रसायन की कीमत का 50 प्रतिशत जो भी कम हो अनुदान देय है।
- रोग/कीट निंयत्रण हेतु फैरोमेन हेतु फैरोमेन ट्रेन अनुदान पर 50 प्रतिशत या 300/ रू. प्रति हैक्टेयर तथा बायोएजेन्ट्स अन्तर्गत उन. पी. वी. अनुदान पर कीमत का 50 प्रतिशत या 900/ रू. जो भी कम हो देय है।
- पौध सरंक्षण उपकरणों फुट स्प्रेयर 750/ रू. बेलीमाउन्टेड हेण्ड रोटरी डस्टर 500/ रू. रोकर स्प्रेयर 800/रू. पावर स्प्रेयर कम डस्टर 2000/ रू. नेपसेक स्प्रेयर ( हस्तचालित ) प्लास्टिक इनसाइड पम्प 400/ रू. नेपसेक स्प्रेयर ( हस्तचालित ) प्लास्टिक आउटसाइड पम्प 550/रू. नेपसेक स्प्रेयर ( हस्तचालित ) ब्रास 625/रू. सोल्डर माउन्टेड डस्टर 800/रू. के लिये अनुदान देय है।
फामर्स फील्ड स्कूल आधारित आई. पी. एम. प्रदर्शन
- कार्य योजना के अन्तर्गत ( मोटे अनाज, गेहूँ फसल व गन्ना ) रू. 17.000/ प्रति फारमर्स फील्ड स्कूल आधारित आई. पी. एम. प्रदर्शन का प्रावधान है।
- आइसोपाम योजना के अन्तर्गत इन आई. पी. एम. प्रदर्शन के लिए रू. 22.680/ प्रति प्रशिक्षण का प्रावधान है। यह प्रशिक्षण 10 हैक्टेयर के प्रदर्शन फार्म पर आयोजित होंगे। प्रदर्शनों हेतु मूगफली में 1.627.50 रू. सोयाबीन में रू. 428/ मक्का में रू. 1.480/ सरसों में रू. 930/ चने में रू. 747.50 प्रति हैक्टेयर का अनुदान देय है।
- सघन कपास विकास कार्यक्रम में रू. 17.000/ प्रति प्रशिक्षण व्यय का प्रावधान है।
उन्नत कृषि यंत्र
- उन्नत कृषि यत्रों पर देय अनुदान का निर्धारण जिला स्तरीय कमेटी द्वारा किया जाता है।
- हस्तचलित एवं बैलचलित कृषि यंत्रो पर मूल्य का 25 से 50 प्रतिश अधिकतम 2.000/रू. प्रति यंत्र अनुदान देय है। ट्रैक्टर चलित सीड कम फर्टीलाइजर ड्रिल, बंड फरमर, चीजल, प्लाऊ, एम. बी./रिजर/डिस्क प्लाऊ, ब्लैड हैरो, लेवलर सभी प्रकार के सीड ड्रिल, कुटटी काटने की मशीन, पोस्ट होल डिगर एवं शक्ति चलित आई. एस. आई थ्रेसर पर मूल्य का 25 प्रतिशत अधिकतम 10.000/रूपये अनुदान देय है।
- 35 पी. टी. ओं. अश्व शक्ति तक के ट्रैक्टर ( भारत सरकार द्वारा अनुमोदित सूची के अनुसार ) पर 25 प्रतिशत या अधिकतम 30.000/ रूपये प्रति ट्रैक्टर अनुदान देय है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति, लघु एवं सींमात कृषकों को प्राथमिकता।
- विशेष शक्ति चालित यंत्र की लागत का 25 प्रतिशत या अधिकतम रू. 20.000/ प्रति यंत्र अनुदान देह है।
- सेल्फ प्रोपेल्ड मशीन पर लागत का 25 प्रतिशत या अधिकतम रू. 30.000/ प्रति यंत्र अनुदान देय है।
जिप्सम वितरण
- जिप्सम का उपयोग क्षारीय ( काला ऊसर ) भूमि को सुधारने के लिए मिटटी की जांच के अनुसार तथा तिलहनी व दलहनी फसलों में पोषक तत्व के रूप में 250 क्रि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से किया जाता है।
- पोषक तत्व के रूप में जिप्सम प्रयोग हेतु लागत का 50 प्रतिशत मय परिवहन लागत अधिकतम 500/रू. प्रति हैक्टेयर अनुदान देय है तथा क्षारीय भूमि सुधार कार्यक्रम के तहत जिप्सम लागत का 50% अनुदान देय है।
- श्रीगंगानगर, बीकानेर मे 700/रू. हनुमानगढ़ में 750/रू. जैसलमेर नागौर में 800/रू. जोधपुर चुरू में 850/रू. अजमेर, सीकर, झंझुनू, पाली, सिरोही में 900/रू. जयपुर दौसा, जालौर, बाड़मेर, टोंक, भीलवाडा़, चित्तौड़ में 950/रू. कोटा, बूंदी, बारा, उदयपुर, राजसमन्द में 1000/रू. अलवर, सवाईमाधोपुर, करौली में 1050/रू. भरतपुर में 100/रू. तथा धौलपुर, झालावाड़, बांसवाडा़, डूंगरपुर में 1150/रू. प्रति मैट्रिक टन अनुमानित दर पर जिप्सम उपलब्ध कराया जा रहा है।
मिटटी पानी की जांच एवं मृदा स्वास्थ्य कार्ड
- राज्य में एन. पी. के. का अनुपात आदर्श के विपरीत असंतुलित हो रहा है। उर्वरकों का संतुलित उपयोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्डो का वितरण किया जा रहा है। इन कार्डों में खेत के स्वास्थ्य की जानकारी होती है।
- भूमि के स्वास्थ्य की जानकारी व उर्वरा शक्ति की जांच हेतु कृषि विभाग द्वारा 33 प्रयोगशालाएं स्थापित हैं। इनमें 21 स्थिर मिटटी परीक्षण प्रयोगशाला श्रीगंगानगर, अलवर, जयपुर, कोटा, झालावाडा़, जोधपुर, बांसवाडा़, डूंगरपुर, भीलवाडा़, हनुमानगढ़, बारा, बूंदी, चुरू, झुंझुनूं, राजसमन्द, जालौर, जैसलमेर, बाड़मेर, दौसा, करौली, व धौलपुर जिलों में स्थापित हैं।
- इसके अतिरिक्त 11 भ्रमणशील मिटटी परीक्षण प्रयोगशालाएं सवाईमधोपुर, टोंक, भरतपुर, दुर्गापुरा, ( जयपुर ), अजमेर, सीकर, चित्तौडगढ़, उदयपुर, सिरोही, पाली एवं नागौर में अपने क्षेत्रों में मिटटी एवं पानी की जांच गाँवों में जाकर करती है। एक क्षारीय मिटटी परीक्षण प्रयोगशाला जोधपुर में स्थित है जो कि समस्याग्रस्त मिटटी एवं पानी के नमूनों की विस्तृत जांच करती है।
- मिटटी के नमूनों में मुख्य पोषक तत्वों की जांच हेतु स्थिर प्रयोगशाला द्वारा पाँच रूपये एवं भ्रमणशील प्रयोगशाला द्वारा दस रूपये प्रति नमूना जांच शुल्क लिया जा रहा है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की जांच हेतु स्थिर प्रयोगशाला 70/रू. जांच शुल्क व पानी की सामान्य जांच हेतु 10/रू. व विस्तृत जांच हेतु 20/रू. जांच शुल्क लिया जाता है।
गुण निंयत्रण
- किसान बीज परीक्षण शुल्क 12/रू. प्रति नमूना, उर्वरक 500/रू. प्रति नमूना एवं कीटनाशक रसायन 500/रू. प्रति नमूना देकर जांच करवा सकते हैं।
- भेजे जाने वाले नमूने के लिए बाजरा, तिल, सरसों, एवं अन्य छोटे आकार के बीज 150 ग्राम, छोटे आकार के सब्जी बीज 50 ग्राम, अन्य सभी प्रकार के बीज 250 ग्राम, सभी प्रकार के उर्वरक 200 ग्राम, कीटनाशक रसायनों में सभी प्रकार के चुर्ण 200 ग्राम, तरल रसायन 100 मि.ली. मात्रा में प्रयोगशाला में भेजें।
- किसान अपने नाम पत्ते सहित आदान का नाम, लोट न.,उत्पाद/पैकिगं तिथि, कालातीत तिथि की सूचना तथा वांछित मात्रा सहित नमूना मय परीक्षण शुल्क बीज परीक्षण प्रयोगशाला, दुर्गापुरा ( जयपुर ), श्रीगंगानगर, चित्तौडगढ़, कोटा, उर्वरक परीक्षण प्रयोगशाला, दुर्गापुरा ( जयपुर ), जोधपुर, उदयपुर व कीटनाशी परीक्षण प्रयोगशाला, दुर्गापुरा ( जयपुर ) एवं बीकानेर में जमा कराकर 1 दिवस में रिपोर्ट प्राप्त कर सकते हैं।
कृषक प्रशिक्षण - 30 कृषकों के समूह में दो दिवसीय संस्थागत प्रशिक्षण दिया जाता है। कृषकों को आने-जाने का किराया, भोजन, कृषि साहित्य, पुरस्कार आदि विभाग द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।
महिला प्रशिक्षण - कृषि में महिलाओं के तकनीकी ज्ञान में वृद्धि करने के लिए ग्राम स्तर पर एक दिवसीय व दो दिवसीय प्रशिक्षण हेतु 30 महिला कृषकों के समूह के लिए भोजन, आने-जाने का किराया, कृषि साहित्य, पुरस्कार आदि विभाग द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।
कृषि शिक्षा हेतु छात्राओं को प्रोत्साहन राशि - कृषि शिक्षा में अध्ययनरत छात्राओं को सीनियर सैकण्डरी ( 10़2 ) हेतु 3.000/ रू. एवं कृषि स्नातक हेतु 5.000/रू. प्रति वर्ष उपलब्ध कराये जाते हैं।
कृषक भ्रमण - कृषकों में तकनीकी ज्ञान में वृद्धि करने हेतु अन्तरखन्डीय भ्रमण पर अधिकतम 500/रू. प्रति कृषक व्यय किये जाने का प्रावधान है। अन्तर्राज्यीय भ्रमण पर 35 से 40 कृषकों को भेजने के लिए कृषकों के आने'जाने का किराया, भोजन एवं ठहरने, स्टेशनरी आदि पर व्यय किये जाने का प्रावधान है। अन्तर्राज्यीय भ्रमण की अवधि 5-7 दिवस की होती है।
किसान मेले एवं प्रदर्शनियाँ - किसान मेंलों एवं प्रदर्शनियों में कृषि की नवीनतम जानकारी दी जाती है।
जैविक खेती-
वर्मी कम्पोस्ट प्रदर्शन - प्रति वर्मी कम्पोस्ट इकाई लागत रू. 1.500/रू. का 25 प्रतिशत रू. 375/ प्रति प्रदर्शन ( 120/रू. प्रति किलों केंचुए एवं 15/रू. पैकिंग चार्जेज ) का निर्धारण कर 3 किलों केंचुए प्रति प्रदर्शन लगाने के इच्छुक कृषकों को दिये जायेगें।
कृषक प्रशिक्षण - प्रत्येक कृषि पर्यवेक्षक द्वारा 20 किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित एवं प्रशिक्षित किया जाता है। प्रशिक्षणों में जलपान की भी व्यवस्था है। पंचायत समिति स्तर पर 2 तथा जिला स्तर पर 4 कार्यशालाओं के आयोजन हेतु स्टेशनरी, साहित्य, जलपान, किराया आदि पर व्यय का प्रावधान ।
अनुदान पर जैव-उर्वरक वितरण
राइजोबियम - मूंगफली सोयाबीन तथा समस्त दलहनी फसलों हेतु।
पी. एस. बी. - समस्त दलहनी, तिलहनी फसलों तथा मक्का फसल हेतु।
एजोटोबैक्टर - सम्सत अनाज वाले फसलें।
जैव - उर्वरक पर सम्बन्धित निर्माता को राइजोबियम व एजोटोबैक्टर पर अधिकतम रू. 3.25 तथा पी. एस. बी. पर अधिकतम रू. 4.00 प्रति पैकेट अनुदान सहायता पाउडर आधारित जैव-उर्वरक पर देय होगी।
कृषि साहित्य - कृषकों को कृषि साहित्य निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। खेती री बांता मासिक अखबार घर बैठे मंगवाने के लिए 12/रू. अपने नजदीकी कृषि कार्यालय में जमा कराएं अथवा इसका मनीआर्डर आहरण वितरण अधिकारी, 250, पंत कृषि भवन. जनपथ. जयपुर के पते पर भिजवाये
12.3 उद्यान दिमाग द्वारा कृषकों को देय सुविधाएं ( )
उद्यानिकी फसलों फल. सब्जी, मसाला, फूल, जड़कन्छ वाली फसलें, ओषधीय एवं सुगधित पौधों आदि के प्रति इकाई अधिक लाभ, पोषाहार सुरक्षा, रोजगार के अधिक अवसर, निर्यात की व्यापक सम्भावना, उत्पादन में स्थिरता व कृषि विविधीकरण के लिए उपयुक्त होने के कारण इन फसलों की खेती को बढा़वा देने के लिये राज्य योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन व सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं के तहत विभन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत कृषकों को दी जा रही सुविधाओं की जानकारी रखकर सरकारी सहायता का फायदा उठायें।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन ( national hhoritculture mission )रू. राजस्थान में उद्यानिकी विकास की विपुल संभावनाओं एवं क्षमता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न उ्दयानिकी फसलों के क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि कर राज्य के कृषकों की आर्थिक दशा में सुधार के लिए राज्य के 17 जिलों में चयनित फसलों के साथ राष्ट्रीय बागवानी मिशन के कार्यक्रम क्रियान्वित किये जा रहे हैं।
क्र.सं. | जिला | चयनित फसलें |
1 | जयपुर | आंवला, मेथी, ग्वारपाठा, अनार,बेलपत्र, अमरूद, बेर, नीबूंवर्गीय, पपीता, जीरा, फूलवाली फसलें |
2 | अजमेर | आंवला, मेथी, ग्वारपाठा, अनार,बेलपत्र, अमरूद, बेर, नीबूंवर्गीय, पपीता, जीरा, मिर्च, फूलवाली फसलें |
3 | अलवर | आवंला ,अनार, बेलपत्र, पपीता, ग्वारपाठा, फूलवाली फसलें |
4 | टोंक | आवंला ,अमरूद, नीबूंवर्गीय, जीरा, सौंफ, ग्वारपाठा, अनार, बेलपत्र, पपीता, फूलवाली फसलें |
5 | कोटा | आवंला, सतंरा, धनिया, मेथी, अनार, अमरूद, लहसुन,फूलवाली फसलें |
6 | बंरा | आवंला, सतंरा, धनिया, मेथी, अमरूद, लहसुन, लैमनग्रास |
7 | झालावाड़ | आंवला, संतरा, धनिया, मेथी, लहसुन, |
8 | चित्तौडगढ़ | आवंला, धनिया, आम, अमरूद, संतरा, लहसुन, अदरक, हल्दी, अश्वगंधा, सफेदमूसली, ग्वारपाठा, फूलवाली फसलें |
9 | जेधपुर | आवंला, बेर, जीरा, अनार, बेलपत्र, नीबूंवर्गीय, मिर्च, लहसुन, नीबूंवर्गीय, मिर्च, ग्वारपाठा, मेंहदी इसबगोल, अश्वगंधा, सफेदमूसली |
10 | पली | आवंला, बेर, जीरा, मेहदी, ग्वारपाठा, अनार, बेलपत्र, नीबूंवर्गीय, मिर्च, नीबूंवर्गीय, मिर्च, इसबगोल, मेथी, अश्वगंधा, सफेदमूसली |
11 | जालौर | बेर, आंवला, अनार, बेलपत्र, जीरा, मिर्च, सौंफ, इसबगोल, |
12 | बइमेर | बेर आंवला, इसबगोल, जीरा |
13 | नागौर | बेर, आंवला, ग्वारपाठा, बेलपत्र, जीरा, मेथी |
14 | श्रीगंगानगर | किन्नों, अनार, आंवला, बेर, लेमनग्रास, फूलवाली फसलें |
15 | करौली | आवंला, आम, अमरूद, नीबूंवर्गीय, धनिया, मिर्च,फूलवाली फसलें |
16 | स. माधोपुर | नीबूंवर्गीय, पपीता, नीबूंवर्गीय पपीता, अनार, बेर, आम, जीरा, सौंफ, धनिया, मिर्च, मेथी, अश्वगंधा, सफेदमूसली, फूलवादी फसलें |
17 | बांसवाडा़ | आम, नीबूंवर्गीय, पपीता, आंवला, अमरूद, मेथी, मिर्च, अदरक, लहसुन, हल्दी, लैमनग्रास, अनार, अश्वगंधा, सफेदमूसली, फूलवादी फसलें |
पौध रोपण सामग्री का उत्पादन
ढांचागत सुविधाएं अ. मातृवृक्ष ब्लाक स्थापना-500 वर्ग मीटर
ब. नेट हाउस में मुलवृत तैयार करना-200 वर्ग मीटर
स. बडिंग ग्रामटिंग हाउस-500 वर्ग मीटर
द. सिंचाई सुविधा
य. सौर ऊर्जा आधारित मृदा जीवाणुनाशक सुविधा का विकास
मॅाडल नर्सरी
क्षेत्रफल कम से कम 4 हैक्टेयर
पौधे उत्पादन क्षमता 4 लाख पौधे प्रतिवर्ष
देय सहायता
निजी क्षेत्र लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 9. 00 लाख रूपये प्रति
नर्सरी क्रेडिट लिंकड बैंक एंडेड अनुदान के रूप में
सरकारी क्षेत्र शत प्रतिशत या अधिकतम 18.00 लाख रूपये प्रति नर्सरी
छोटी नर्सरी
ढाचागत सुविधाएं अ. उठी हुई क्यारियों वाला 2000 वर्ग मीटर का नैट हाउस
ब. माइक्रो स्प्रिंकलर
स. पौधे तैयार करने की बैडस
द. शौलर जीवाणु नाशन आदि
क्षेत्रफल कम से कम हैक्टेयर
पौधें उत्पादन क्षमता 50.000 पौधे प्रतिवर्ष
देय सहायता
निजी क्षेत्र लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 1.50 लाख रूपये प्रति नर्सरी
क्रेडिट लिंकड बैंक एंडेड अनुदान के रूप में
सरकारी क्षेत्र शत प्रतिशत या अधिकतम 3.00 लाख रूपये प्रति नर्सरी
सब्जी बीज उत्पापदन ढाचांगत सुविधाएंरोलिंग पोली शीट्स, इंसेक्ट नेट व स्प्रिंकलर सिस्टम,
मिटटी जीवाणुनाशन सुविधाओं के साथ 100 से 200 वर्गमीटर क्षेत्र में
ग्रीन हाउस निर्माण।
देय सहायता
निजी क्षेत्र लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम रू. 25.000 प्रति हैक्टेयर-क्रेडिट
लिंकड बैंक एडेड अनुदान के रूप में। एक कृषक अधिकतम 5 हैक्टेयर
क्षेत्र के लिये सहायता प्राप्त कर सकता हैं।
सरकारी क्षेत्र लागत का शत प्रतिशत या अधिकतम 50.000 रूपये प्रति हैक्टेयर
बीज ढाँचागत विकास
ढाँचागत सुविधाएं बीजों के उचित रख-रखाव, भण्डारण व पैकिंग के लिए ड्राईंग
प्लेटफार्मस स्टोंरेज बिन्स पैकेजिंग यूनिट व इससे संबधित सुविधाएं।
देय सहायता
निजी क्षेत्र प्रोजेक्ट आधारित, लागत का 25 प्रतिशत क्रेडिट लिंकड बैंक एडेड
अनुदान के रूप में।
सरकारी क्षेत्र प्रोजेक्ट आधारित लागत का शत-प्रतिशत अनुमानित
नये बगीचों की स्थापना :
फसल लागत,
हैक्टेयर सहायता अनुदान
फल 30000 रूपये बगीचों की स्थापना के कुल लागत का 75 प्रतिशत या
अधिकतम 22.500
रूपये प्रति हैक्टेयर, अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए तीन
किस्तों में।
प्रथम मल्चिंग व तृतीय
वर्ष के लिए क्रमशः 50, 20, 30 प्रतिशत। दूसरे वर्ष की
सहायता राशि पौधों के 75 प्रतिशत
जीवित रहने पर तीसरे वर्ष की 90 प्रतिशत पौधों के जीवित रहने पर, एक कृषक
अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए सहायता प्राप्त कर सकता है।
फूल (कट प्लावर
लघु सीमांत कृषक ) 7000 रूपये लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम रू. 35.000 प्रति
हैक्टेयर।
एक कृषक अधिकतम 2 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए सहायता प्राप्त
कर सकता है।
अन्य कृषक लागत का 33 प्रतिशत या अधिकतम रू. 23.100/प्रति हैक्टेयर ।
एक कृषक अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए सहायता प्राप्त कर सकता है।
बल्ब्स प्लावर लघु
सींमात कृषक 90000 रूपये लागत का 50 प्रतिशत रू. 45000 प्रति हैक्टेयर। एक कृषक
अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए सहायता प्राप्त कर सकता
है।
अन्य कृषक लागत का 33 प्रतिशत रू. 29.700 / प्रति हैक्टेयर। एक कृषक
अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए सहायता प्राप्त कर सकता है।
लूज प्लावर लघु
सीमांत कृषक 24000 रूपये लागत का 50 प्रतिशत रू. 12.000/प्रति हैक्टेयर। एक कृषक
अधिकतम 2 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए सहायता प्राप्त कर सकता है।
अन्य कृषक लागत का 33 प्रतिशत रू. 7920/ प्रति हैक्टेयर। एक कृषक
अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए सहायता प्राप्त कर सकता है।
मसाला व औषधीय
सुगांधित फसलें 15000 रूपये लागत का 75 प्रतिशत रू. 11.250/प्रति हैक्टेयर। एक कृषक
अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए सहायता प्राप्त कर सकता है।
पुराने बगीचों का जीर्णोद्धार : पुराने बगीचों की उत्पादकता बढानें के लिए नये पौधें लगाने, खाद, उर्वरक, सूक्ष्म तत्व, पौधे संरक्षण रसायन उपलब्ध कराने, कटाई छँटाई व ग्राफटिंग आदि कार्य।
अनुमानित लागत:- 30.000/रूपये प्रति हैक्टेयर
सहायता/अनुदान - लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 2 हैक्टेयर के लिए सहायता प्राप्त कर सकता है।
जल स्त्रोतों का विकास:- सामुदायिक जल स्त्रोतों के विकास के लिए टैंक, फार्म पोण्ड आदि प्लास्टिक लाइनिंग के साथ तैयार करने पर 10 हैक्टेयर क्षेत्र में एक सामुदायिक इकाई की स्थापना पर अधिकतम 10. 00 लाख रूपये तक शत-प्रतिशत सहायता का प्रावधान ।
प्रोडेक्टेड कल्टीवेशन:-
ग्रीन हाउसः-
कृषक श्रेणी:- लघु सीमांत
हाइटेक ग्रीन हाउस- लागत का 75 प्रतिशत या अधिकतम 487.50 रूपये प्रति वर्ग मीटर।
सामान्य ग्रीन हाउस:- लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 125 रूपये प्रतिवर्ग मीटर। प्रत्येक लाभार्थी 1000 वर्गमीटर तक सहायता प्राप्त कर सकता है।
अन्य कृषक:-
हाइटेक ग्रीन हाउस:- लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 325 रूपये प्रतिवर्ग मीटर।
सामान्य ग्रीन हाउस:- लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 67 रूपये प्रतिवर्ग मीटर। प्रत्येक लाभार्थी 1000 वर्गमीटर हेतु सहायता प्राप्त कर सकता है।
मल्ंिचग
सहायता:- लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 7.000/रूपये प्रति हहैक्टेयर, अधिकतम 2 हैक्टेयर प्रति लाभार्थी।
सहायता:- लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5.000/रूपये प्रति 1000 वर्ग मीटर, एक कृषक अधिकतम 5 हैक्टेयर तक सहायता प्राप्त कर सकता है।
समन्वित पोषक तत्व प्रंबध:- सेनेटरी व फाइटों सेनेटरी प्रयोगशाला- ( सरकारी क्षेत्र के लिए ) सहायता: प्रोजेक्ट आधारित
समन्वित कीट प्रंबध:- सहायता- लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 1.000 / रूपये प्रति हैक्टेयर। एक कृषक अधिकतम 4 हैक्टेयर तक सहायता प्राप्त कर सकता है।
डिजीज फारकास्टींग इकाई ( सरकारी क्षेत्र के लिए ) सहायता:- अधिकतम 400 लाख रूपये तक
बायोकन्ट्रोल लैब
अनुमानित लागत:- 80.00 लाख रूपये प्रति इकाई।
सहायता:- सरकारी क्षेत्र अधिकतम 80 लाख रूपये।
निजी क्षेत्र का 50 प्रतिशत या अधिकतम 40.00 लाख रूपये प्रति इकाई क्रेडिट लिंकड बैंक एंडेड अनुदान के रूप में।
प्लांट हैल्थ क्लिनिक
अनुमानित लागत :- 20.00 लाख रूपये प्रति इकाई
सहायता:- सरकारी क्षेत्र- अधिकतम 20.00 लाख रूपये प्रति इकाई, निजी क्षेत्र-लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 10 लाख रू. प्रति इकाई क्रेडिट लिंकड बैंक एडेड अनुदान के रूप में।
पत्ती/उत्तक विश्लेषण प्रयोगशाला सरकारी/निजी क्षेत्र
सहायता:- सरकारी क्षेत्र-अधिकतम 20.00 लाख रूपये प्रति इकाई, निजी क्षेत्र-लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 10 लाख रू. प्रति इकाई क्रेडिट लिंकड बैंक एडेड अनुदान के रूप में।
जैविक खेती:-
जैविक खेती को अपनाने हेतु सहायता:- जैविक आदानों पर लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 10.000/रूपये प्रति हैक्टेयर। एक कृषक अधिकतम 4 हैक्टेयर तक सहायता प्राप्त कर सकता है।
वर्मीकम्पोस्ट इकाई सहायता:- लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 30.000/रूपये प्रति इकाई।
जैविक खेती प्रमाणीकरण सहायता:- 50 हैक्टेयर के एक समूह के लिए 5.00 लाख रूपये।
मानव संसाधन विकास:-
(1) कृषकों की तकनीकी क्षमता में वृद्धि के लिये प्रशिक्षण प्रदर्शन, प्रदर्शनों के द्वारा कृषि तकनीकी की जानकारी, तकनीकी साहित्य, प्रचार-प्रसार आदि के लिये कृषक 1500/ रूपये व अन्य राज्यों व अनुसंधान केन्द्रों पर विकसित फसल उत्पादन तकनीकी दिखाने के लिये 7 दिवसीय प्रशिक्षण भ्रमण कार्यक्रम हेतु किराया, ठहरने, प्रशिक्षण भ्रमण कार्यक्रम हेतु किराया, ठहरने, खाने, प्रशिक्षण आदि के लिये रूपये 2500/ प्रति कृषक का प्रावधान है।
(2) उद्यानिकी सें जुडें हुए जिला/राज्य स्तर के अधिकारियों व कृषि विस्तार कार्यकर्ताओं को बागवानी आधुनिक नवीनतम तकनीकी की जानकारी देने हेतु राज्य/राज्य के बाहर आई. सी. ए. आर. के विभिन्न संस्थानों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों हेतु रूपये 50000 प्रति प्रशिणार्थी प्रावधान है।
(3) उद्यानिकी के क्षेत्र में स्वरोजगार, उद्यमिता विकास आदि के लिये कृषि विश्वविद्यालयों/के.वी.के./आई.सी.ए. आर. संस्थानों को प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिये।
प्रशिक्षण कार्यक्रम | अवधि ( माह ) | प्रस्तावित वित्तीय सहायता ( रूपये लाखों में ) | प्रशिक्षणार्थियों की संख्या |
सुपरवाईजर प्रशिक्षण | 12 | 18.0 | 25 |
बगवानी प्रशिक्षण | 6 | 13.5 | 50 |
उद्यमिता प्रशिक्षण | 3 | -- | 20 |
मधुमक्खी पालन
''बी'' कॅालोनी लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 350 रूपये प्रति चार फ्रेम कॅालोनी।
''बी बक्से'' लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 450 रूपये प्रति बॅाक्स सैट उपकरण।
प्रदर्शनों/फ्रन्टलाइन प्रदर्शनों के द्वारा तकनीकी स्नांतरण :- कृषि की नवीन तकनीकी या फसल की खेती/समन्वित कीट-व्याधी प्रबन्धक, जैविक खेती आदि के कृषक सहभागिता आधारित 1.00 हैक्टेयर क्षेत्र में प्रदर्शन आयोजित करने हेतु प्रोजेक्ट आधार पर सहायता का प्रावधान।
- प्रदर्शन सहायता:- प्रोंजेक्ट आधारित लागत का 75 प्रतिशत
- फ्रन्टलाइन प्रदर्शन ( के. वी. के ./कृषि विश्वविद्यालय ) सहायता:- प्रोजेक्ट आधारित लागत का शत-प्रतिशत
फसलोत्तर प्रबन्ध
- पैक हाउस - अनुमानित लागत:- 2.50 लाख रूपये प्रति इकाई सहायता:- क्रेडिट लिंकड बैंक एंडेड अनुदान, प्रोजेक्ट की लागत का 25 प्रतिशत।
- कोल्ड स्टोरेज:- अनुमानित लागत:- 2.00 करोड़ रूपये प्रति इकाई सहायता:- क्रेडिट लिंकड बैंक उंघ्डेड अनुदान, प्रोजेक्ट का लागत का 25 प्रतिशत।
- रेफरीजेरेटेड वेन/कन्टेनर:- अनुमानित लागत 24.00 लाख रूपये प्रति इकाई सहायता:- क्रेडिट लिंक्ड बैंक एंडेड अनुदान, प्रोजक्ट की लागत का 25 प्रतिशत।
- मोबाइल प्रोसेसिंग इकाई:- अनुमानित लागत 24.00 लाख रूपये प्रति इकाई सहयता:- क्रेडिट लिंकड बैंक एंडेड अनुदान, प्रोजेक्ट की लागत का 25 प्रतिशत।
- मार्केट इन्टेलिजेंस सहायता:- प्रोजेक्ट आधारित
- बाई बेक इन्वरवेंशन सहायता:- प्रोजेक्ट आधारित
- ग्रामीण बाजार अपनी मण्डी:- अनुमानित लागत:- रूपये 15.00 लाख प्रति इकाई सहायताः- क्रेडिट लिंकड गैंक एंडेड अनुदान, प्रोजेक्ट की लागत का 25 प्रतिशत।
- माकेट लेड एक्सटेंशन सहायता:- प्रोजेक्ट आधारित शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता।
राज्य योजना:-
बगीचों से आजीविका कार्यक्रम:-
गडढें खोदनें, उद्यानिकी क्रियाएं अपनाने व आदानों का उपयोग कृषक केस्तर पर करने पर फल बगीचों की स्थापना के लिए 7500 रूपये प्रति हैक्टेयर सहायता का प्रावधान है।
फसलें:- अनार, किन्नों, संतरा, बेलपत्र, नीबूं, अमरूद, आम, सीताफल, बेर, आंवला।
कृषक हिस्सा:- 750 रूपये प्रति हैक्टेयर।
वित्तीय सहायता:- कुल सहायता राशि 7500 रूपये प्रति हैक्टेयर।
(1) कृषक को अनुदान राशि 6750 रूपये प्रति हैक्टेयर।
(2) परिवहन एवं प्रंबधन व्यय 750 हैक्टेयर।
(3) कृषक न्यून्तम 0.4 हैक्टेयर एवं अधिकतम 4 हैक्टेयर क्षेत्र में बगीचा लगाने हेतु सहायता प्राप्त कर सकता है।
फसलोत्तर प्रंबध गतिविधियों पर सहायता:-
कार्यक्रम:- पैक हाउस पात्रता:- कृषक, कृषक समूह, स्वयंसेवी संगठन, उद्यामी।
देय सहायता:- इकाई स्थापना की लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5.00 लाख रूपये क्रेडिट लिंक्ड बैंक अनुदान के रूप में । प्रोजेक्ट लागत का 40 प्रतिशत बैंक ऋण अनिवार्य है।
कार्यक्रम:- कुल चैन पात्रता:-कृषक, कृषक समूह, स्वयंसेवी संगठन, उद्यामी।
देय सहायता:- इकाई स्थापना की लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 2.00 लाख रूपये क्रेडिट लिंक्ड बैंक अनुदान के रूप में । प्रोजेक्ट लागत का 40 प्रतिशत बैंक ऋण अनिवार्य है।
कार्यक्रम:- प्रंसंस्करण इकाई पात्रता:-कृषक, कृषक समूह, स्वयंसेवी संगठन, उद्यमी।
देय सहायता:- इकाई स्थापना की लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 50.000 रूपये।
कार्यक्रम:- पैकिंग समाग्री पात्रता:- कृषक।
देय सहायता:- पैंकिग समाग्री-प्लास्टिक क्रेटस, कार्ड बोर्ड आदि क्रय करने पर लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5 हजार रूपये प्रति कृषक। प्रति कृषक 50 प्लास्टिक क्रेटस से अधिक देय नहीं हैं।
वर्मी कम्पोस्ट इकाई स्थापना:- पात्रता:- कम से कम एक हैक्टेयर क्षेत्र में उद्यानिकी फसलों बगीचे वाले कृषक।
देय सहायता:-
(1) इकाई स्थापना की लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 2.000 रूपये।
(2) प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिये 500 रू. प्रति कृषक।
शुष्क क्षेत्र में उद्यानिकी विकास:- पात्रता - कम से कम दो हैक्टेयर क्षेत्र में उद्यानिकी अपनाये हुये व बेर, अनार, लसोडा़, बेलपत्र आदि फलदार पौधें लगाने के इच्छुक कृषक।
देय सहायता:- विभाग द्वारा अनुमोदित तक नियमानुसार वर्षा जल संग्रहण के लिये सींमेट के ढांचों के निर्माण हेतु लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 30 हजार रूपये प्रति कृषक।
अन्य मुख्य कार्यक्रम:-
कार्यक्रम का नाम:- अधिक मूल्य वाली फसलों को प्रोत्साहन।
देय सहायता:- अधिक मूल्य वाली विदेशी सब्जियों के बीज/पौध रोपण सामग्री की लागत का 75 प्रतिशत या अधिकतम 7 हजार रूपये प्रति हैक्टेयर।
कार्य का नाम:- पौध संरक्षण रसायनों पर अनुदान।
देय सहायता:- पौध संरक्षण रसायनों की कीमत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 300 रूपये प्रति हैक्टेयर। कार्यक्रम अन्तर्गत लघु, सींमात, अनुसूचित जाति/जनजाति एवं महिला कृषकों के लिये प्रावधान।
कार्यक्रम का नाम:- प्याज प्रदर्शन
देय सहायता:- अनुसूचित जाति के कृषकों के 0.2 हैक्टेयर क्षेत्र में प्याज प्रदर्शन लगाने पर 400 रूपये प्रति कृषक।
कार्यक्रम का नाम:- मौसम बीमा
देय सहायता:- संतरा, किन्नों, धनिया, जीरा व मेथी व सौंप फसलों में मौसम बीमा के लिये निर्धरित प्रीमियम राशि का 33 प्रतिशत।
सूक्ष्म सिंचाई योजना:-
फव्वारा व ड्रिप संयत्र स्थापना की लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम क्रमशः 7500 व 33.120 रूपये प्रति हैक्टेयर की दर से मॅाडल के अनुसार निम्नानुसार अनुदान का प्रावधान। एक कृषक अधिकतम 5 हैक्टेयर क्षेत्र के लिये अनुदान प्राप्त कर सकता है।
फव्वारा संयत्र
क्र. स. | फव्वारा मॅाडल | देय अधिकतम अनुदान (एल्युमिनियम व एच. डी. पी. ई. दोनों के लिए ) | ||
समस्त श्रेणी के कृषक | ||||
63 | 75 | 90 | ||
1- | 0.5 | 3950 | 4100 | - - |
2- | 1 | 6850 | 7150 | 7500 |
3- | 2 | 8500 | 8850 | 10600 |
4- | 3 | 10900 | 1130 | 13450 |
5- | 4 | 12900 | 13300 | 15750 |
6- | 5 | 15050 | 15500 | 18300 |
- 30 से 40 प्रतिशत तक पानी की बचत।
- न क्यारी न धोरा की जरूरत।
बूँद-बूँद (ड्रीप) सिंचाई संयत्र
अन्तराल (मी.) | क्षेत्रफल ( हैक्टेयर ) वार देय अधिकतम अनुदान | |||||
12/12 | 0.40 | 1.00 | 2.00 | 3.00 | 4.00 | 5.00 |
10/10 | 6095 | 9603 | 14490 | 18745 | 30878 | 40998 |
9/9 | 6958 | 10350 | 15928 | 20700 | 33293 | 44218 |
8/8 | 7130 | 12708 | 20413 | 32143 | 35305 | 16633 |
6/6 | 7418 | 11443 | 17998 | 23978 | 37663 | 49565 |
5/5 | 8280 | 17365 | 29440 | 40423 | 60835 | 79005 |
4/4 | 8683 | 18860 | 32545 | 47783 | 67333 | 86710 |
3/3 | 9718 | 22598 | 36283 | 57903 | 81765 | 103098 |
3/1.5 | 10293 | 20470 | 41055 | 55258 | 75210 | 91023 |
2.5/2.5 | 23115 | 46288 | 63078 | 84008 | 104018 | |
2/2 | 11500 | 22885 | 46805 | 63940 | 114713 | 137770 |
1.5/1.5 | 12248 | 28635 | 49680 | 70553 | 94818 | 128455 |
1/1 | 15008 | 31625 | 62963 | 94933 | 118393 | 161575 |
15238 | 33120 | 55488 | 84238 | 114943 | 143290 |
- 50 से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत
विभिन्न फसलों में बूँद-बूँद संयत्र
(ड्रीप) चलाने का सांकेतिक समय
माह गणना का तकनीकी आधार | बूँद-बूँद संयत्र चलाने का समय ( घण्टा: मिनट ) | |||||
बेर | आंवला | संतरा/किन्नू/मौसमी | नीबूं/अमरूद/अनार | पपीता | सब्जियाँ | |
जनवरी (2.6) | 0:35 | 0:40 | 0:30 | 0:30 | 0:30 | 0:25 |
फरवरी (4.8) | 0:45 | 1:15 | 0:50 | 0:55 | 1:00 | 0:45 |
मार्च (6.2) | 2:00 | 1:35 | 1:00 | 1:00 | 1:15 | 1:00 |
अप्रैल (9.6) | 1:35 | 2:30 | 1:35 | 1:50 | 1:55 | 1:30 |
मई (12.0) | 2:00 | 3:00 | 2:00 | 2:15 | 2:20 | 1:50 |
जून (11.1) | 1:40 | 2:50 | 1:50 | 2:00 | 2:10 | 1:45 |
जुलाई (6.5) | 1:00 | 1:00 | 1:40 | 1:00 | 1:15 | 1:00 |
अगस्त (5.0) | 0:45 | 1:20 | 0:50 | 1:00 | 1:00 | 0:45 |
सितंबर (6.0) | 0:55 | 1:35 | 1:50 | 1:10 | 1:10 | 0:55 |
अक्टूबर(5.6) | 0:50 | 1:30 | 1:00 | 1:00 | 1:10 | 1:10 |
नवम्बर(4.0) | 0:35 | 1:10 | 0:40 | 0:45 | 0:50 | 0:40 |
दिसंबर(3.0) | 0:30 | 0:45 | 0:30 | 0:35 | 0:35 | 0:30 |
ड्रिपर की संख्या प्रति पौधा | चार | चार | चार | चार | चार | 1 फीट दूरी |
ड्रिपर क्षमता | 4 ली. प्रति घण्टा | 4 ली. प्रति घण्टा | 4 ली. प्रति घण्टा | 4 ली. प्रति घण्टा | 4 ली. प्रति घण्टा | 1.2 ली. प्रति घण्टा |
सिंचाई अन्तराल | 2 दिन में एक बार | प्रतिदिन (रोजाना) | प्रतिदिन (रोजाना) | 2 दिन में एक बार | प्रतिदिन (रोजाना) | प्रतिदिन (रोजाना) |
फल वाले पौधों की सिंचाई नहीं की जाती हैं।
उक्त गणना प्रतीकात्मक/सांकेतिक है। उक्त गणना पूरी बढवार वाले पौधों को आधार मानकर की गई है। इसलिए 1-2-3-4 वर्ष के पौधों में क्रमशः एक तिहाई, आधा व तीन चैाथाई समय ड्रिप चलावें लेकिन छोटी आयु में ज्यादा देर पानी दें।
12.4 राजस्थान बीज निगम द्वारा कृषकों को देय सुविधाएं ( )
भारत सरकार द्वारा जारी नई कॅामन मार्गदर्शिका में कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता वृद्धि के सम्बन्ध में प्रमाणित बीज तैयार करने एवं उपयोग में लाने पर विशेष जोर दिया गया है अतः राजस्थान में राजस्थान बीज निगम एवं इसके विभिन्न केन्द्रों द्वारा कृषकों को जो सुविधाएं देय है उसका ज्ञान होना आवश्यक है।
राजसीड्स द्वारा निम्नलिखित फसलों की विभिन्न किस्मों का आधार एवं प्रमाणित बीज उत्पादन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
अनाज, बाजरा, ज्वार, मक्का, धान, गेहूँ ,जौ।
दलहन, मूंग, मोठ, चांवल, उड़द, अरहर, ग्वार, चना, मसूर।
तिलहन, तिल, सोयाबीन, अरण्डी, मूंगफली, सरसों, तारामीरा।
रेशेदार फसलें - कपास।
मसाला बीज - जीरा, धनिया, मेथी, सौंप।
औषधीय - ईसबगोल।
चारा - जई, रिजका, बरसीम।
बीज उत्पादकों से वसूल की जाने वाली राशि।
नांमाकन शुल्क रूपये 51 / प्रति उत्पादक ( एक बार )
पंजीकरण शुल्क रूपये 80/प्रति उत्पादक प्रति सीजन निरीक्षण राशि स्व परागित फसलें रूपये 80/ प्रति एकड़ एवं परपरागित फसलें रूपये 90/प्रति एकड़ फार्म न.- 1 ए का शुल्क रूपये 3/ प्रति उत्पादक प्रति सीजन।
बीज उत्पादकों को देय सुविधाएं
- अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बीज उत्पादकों से निरीक्षण राशि नहीं ली जाती है तथा इसका वहन निगम द्वारा किया जाता है।
- बीज करार पत्र रूपये 100/ के स्टाम्प पेपर के स्थान पर केवल सादा कागज पर अनुबंध पर प्रेषित करने का प्रावधान है।
- सभी फसलों पर बिना बीज गाँव हेतु रू. 30/प्रति क्विंटल ( भाडा़ छूट रू. 15/ व बारदाना छूट रू. 15/ देय है।
- यदि बीज उत्पादक किसी कारणवश अपना बारदाना वापस नहीं ले जाता है तो रूपये 15/ प्रति बोरी की दर से अतिरिक्त भुगतान का प्रावधान है।
बीज उत्पादकों से बीज क्रय की नीति
राजसीड्स की विभिन्न इकाइयों द्वारा उत्पादित प्रमाणित बीज को क्रय करने के लिए इकाईवार मंत्रियाँ निर्धारित है। किन्तु समस्त इकाइयों हेतु निम्न फसलों के लिए निम्न मंडियों की दरें देय होगी।
मोठ-नोखा ( बीकानेर ) मंडी
सोयाबीन-कोटा मंडी
चाँवल- कुचामनसिटी मंडी
धान-बूंदी मंडी
धनिया-रामगंज मंडी ( कोटा )
सौंप, जीरा, ईसबगोल-उझां मंडी ( गुजरात )
बीज गाँव एवं गैर बीज गाँव योजना:- इसके अन्तर्गत उत्पादित बीज के क्रय हेतु सम्बन्धित इकाई के लिए सम्बन्धित मंडी के उच्चतम दरों के औसत पर फसल वाईज निम्नलिखित अतिरिक्त प्रिमियम देय है-
तिलहन | फसल | मंडी | बीज गाँव | बीज गाँव |
सोयाबीन | कोटा | 300 | 750 | |
मूंगफली | संबंधित मंडी | 400 | 750 | |
तिल | संबंधित मंडी | 500 | 900 | |
सरसों | संबंधित मंडी | 200 | 750 | |
तारामीरा | संबंधित मंडी | सरसों की क्रय दर से 10 प्रतिषत कम |
दलहन | फसल | मंडी | बीज गाँव | बीज गाँव |
मोठ | नौखा | 500 | 850 | |
मूंग | संबंधित मंडी | 300 | 750 | |
उड़द | संबंधित मंडी | 300 | 800 | |
अरहर | संबंधित मंडी | 300 | 800 | |
चंवल | संबंधित मंडी | 300 | 800 | |
ग्वार | संबंधित मंडी | 300 | 750 | |
चना | संबंधित मंडी | 300 | 750 | |
मसूर | संबंधित मंडी | 500 | 1000 |
अन्य फसलों हेतु निम्नलिखित क्रय नीति निर्धारित है-
जई- एन. एस. सी. द्वारा निर्धारित क्रय दर पर 5 प्रतिशत अतिरिक्त।
बरसीम- एम. पी. राज्य बीज निगम/एन. एस. सी. द्वारा निर्धारित क्रय दर जो भी अधिक हो, उस पर 20 प्रतिशत अधिक।
रिजका- गुजरात राज्य बीज निगम, एन. एस. सी. द्वारा निर्धारित क्रय दर जो भी अधिक हो, उस पर 20 प्रतिशत अधिक।
धनिया, मेथी - सम्बन्धित मंडी की निर्धारित अवधि के उच्चतम औसत पर 300 रू. अतिरिक्त।
सौंप -निर्धारित अवधि के लिए उंझा मंडी की उच्चतम औसत पर 300 रू. अतिरिक्त।
जीरा - निर्धारित अवधि के लिए उंझा मंडी की उच्चतम औसत पर 1000 रू. अतिरिक्त।
नोट:- रबी सीजन में उत्पादित मक्का बीज के क्रय पर देय उक्त प्रिमियम के अतिरिक्त 100 रू. प्रति क्विटंल दिये जाने के प्रावधान है।
बीज उत्पादक प्रेरक योजना
राजसीड्स ने बीज उत्पादन व कृषि क्षेत्र में कार्यरत/अनुभवी गैर सरकारी/निजी व व्यक्तियों के सहययोग से राज्य के नये कृषकों को निगम के बीज उत्पादन कार्यक्रम से जोड़ने हेतु बीज उत्पादक प्रेरक योजना प्रारम्भ की है।
बीज उत्पादक प्रेरक के कार्य
- अपने निजी प्रयासों से गांव के कृषकों को एकत्रित कर उनके माध्यम से एक ही फसल एवं किस्म अथवा अन्य फसलों एवं किस्मों का बीज उत्पादन कार्यक्रम निर्धारित पृथक्करण दूरी पर आयोजित करवाना।
- बुवाई के पश्चात खेतों का निरीक्षण करवाना।
- उत्पादित बीजों की गुणवत्ता कायम रखने के लिए प्रमाणीकरण मापदण्डों के अनुरूप व्यापक रोंगिंग करवाना।
- अतिंम प्रमाणीकरण निरीक्षण के पश्चात मानक पाये गये क्षेत्रों से राॅ सीड्स एकत्रित करके सम्बन्धित विधायन केन्द्रों पर पहुंचना।
- बीज उत्पादक प्रेरकों द्वारा अनाज एवं दलहनों हेतु न्यूनतम 25 हैक्ट, एवं तिलहन हेतु न्यूनतम 15 हैक्टेयर क्षेत्र में बीज उत्पादन कार्यक्रम आयोजित करवाना आवश्यक होगा।
बीज उत्पादक प्रेरकों को दय मानदेय का विवरण
उत्पादित फसल का नाम मानदेय रू./ क्वि.
दलहन एवं तिलहन ( समस्त किस्में ) एवं सीरियल ( संकुल किस्में ) रू. 25/
समस्त फसलों की संकर किस्में रू. 60/
चारा फसलों की किस्में रू. 30/
उक्त मानदेय सभी वर्गो के नये बीज उत्पादकों द्वारा उत्पादित विधायित मानक बीज की मात्रा पर देय होगा। राजस्थान राज्य बीज निगम द्वारा किसानों को अनुदानित दर पर प्रमाणित बीज उपलब्ध करवाता है। दलहन, तिलहन के बीजों में निगम द्वारा विक्रय मूल्य जारी करने से पूर्व कुल विक्रय मूल्य में 1200 रू. घटाकार बाजार से कम दरों पर अनुदानित प्रमाणित बीज उपलब्ध करवाया जाता है।
12.5 जलग्रहण क्षेत्रों में पशुधन विकास एवं पशुपलान के उन्नत आयाम ( )
पशुपलान , कृषि व्यवसाय का अभिन्न अंग है, जहाँ किसान अपने दैनिक कृषि कार्य के लिए पशुओं को ही शाक्ति स्त्रोत के रूप में काम लेता है, साथ ही पशुधन इस देश के जन सामान्य के पोषण के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्व उपलब्ध कराने का भी मूल स्त्रोत रहा है। राजस्थान के लिए पशुधन का महत्व और भी अधिक है - क्योंकि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। अतः हम भली- भाँति कह सकते हैं कि हमारे प्रदेश में पशुपालन का महत्व कृषि से भी अधिक है।
हमारा प्रदेश निरन्तर अकाल की विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है, इसलिये जलग्रहण क्षेत्रों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि हरके गाँव का पानी गाँव के इर्द-गिर्द संग्रह कर कृषि एवं पशुपालन को बढावा दिया जा सके। जलग्रहण क्षेत्रों में पशुधन विकास की बहुत संभावना है। ग्रामीण पशुओं की उत्पादकता बहुत कम है जिसे बढाना जरूरी है। हमारे देश में पशुधन विश्व का कुल 23 प्रतिशत है तथा दूध उत्पादन विश्व का 8 प्रतिशत है।
अतः हमारे पशु अच्छा दूध उत्पादन देने वाले होने चाहिये, तभी एक छोटे किसान के परिवार के लिए यह एक आश्रित नहीं परन्तु सहारा हो सकता है। ग्रामीण क्षेंत्रो में पशुपालन भ्रम तथा देवी-देवताओं आदि का प्रकोप बनकर रह गया है। इससे दूध उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पडा़ है।
अतः जलग्रहण क्षेंत्रो में पशुपालन व्यवसाय कृषकों की आर्थिक दशा को सुधारने में मुख्य भूमिका निभा सकता है। लेकिन इस हेतु आवश्यकता इस बात है कि पशुपालक-पशुपालन के उन्नत आयाम को समझे और उनका अनुसरण कर पशुपालन को लाभकारी बनाये।
वैसे तो हर पशुपालक यह चाहता है कि उससे पशु उसे ज्यादा दूध दें, बीमार न हों तथा उनकी शारीरिक क्रियाएं कम खर्च में सुचारू रूप से बराबर चलती रहे लेकिन इन सबके लिए आवश्यकता है कि पशुपालक-
- उन्नत पोषण
- प्रजनन
- रख-रखाव
- स्वास्थ्य पर पूर्ण रूप से समानान्तर ध्यान दें।
पशु से अधिक दूध का मूल आधार उनकी नस्ल से हैं-
उन्नत नस्लों में - गायों में - जर्सी, रेड-डेन, होलस्टीन फ्रीजयन एवं ब्राउनस्विस हैं।
भैंसो में - मुर्रा, जफराबादी, सुरती, मेहसाना, भदावरी, नीली व रावी, नागपुरी आदि हैं।
बकरी में - सानेन टोगन वर्ग, फ्रेव अलाइन व नुनियन आदि हैं।
भेंडो़ में - मेरीनों, रेमबूलेट, कोराइडल, कराकूल, सफलोक व डोरसेट आदि हैं।
अधिक दूध उत्पादन नस्ल के अलावा संतुलित पौष्टिक आहार पर निर्भर करता है जिससे पशु अधिक दूध उत्पादन कर सके।संतुलित आहार पशु के शरीर और उत्पादन व रख रखाव आदि की आवश्यकता की पूर्ति करता है और पशु को सभी आवश्यक पौष्टिक तत्व प्रदान करता है।
पोषक तत्वों में - कार्बोज, प्रोटीन, वसा, विटामिन एवं खनिज-लवण आते हैं अतः हम भलीभाँति समझ सकते हैं कि-
संतुलित आहार -
- अधिक दूध उत्पादन
- उचित स्वास्थ्य
- नियमित वृद्धि
- समयिक परिपक्वता
- नियमित प्रजनन एवं
- रोग प्रतिरोधक क्षमता आदि के लिए जरूरी है।
संतुलित आहार -
सूखा चारा, हरा चारा तथा बाँटा आदि का बराबर अनुपात में उपयोग करने से बनता है ताकि पशु अपने शरीर की आवश्यकता की पूर्ति उनमें उपलब्ध पोषक तत्वों से बराबर करता है और पशुपालकों को ज्यादा ज्यादा दूध उत्पादन प्राप्त होता है।
सन्तुलित आहार के अवयव
सूखा चारा | हरा चारा | बाँटा | ||||
दलहनी | गैर दलहनी | अनाज ( 25 क्रि.ग्रा ) | अनाज के उपजात ( 50 क्रि.गा. ) | खल ( 22 क्रि.ग्रा. ) | खनिज लवण (3 क्रि.ग्रा. ) | |
कडवी | रिजका | ज्वार | जौ | गेहूँ का चापड़ | मूंगफली | खनिज लवण पाउडर 2 क्रि. ग्रा. |
भूसा | बरसीम | मक्का | गेहूँ | चावल का पांेलिस | तिल | नमक |
नमक | ग्वार | जई | मक्का | दालों कि चूरी | कपास | नमक ( आयोडाइज ) |
चावल एवं दालों कि फसलें | बजरा आदि | ज्वार | दालों के छिलके | सोयाबीन | ||
बाजरा | ग्वार कि चूरी | सूरजमुखी | ||||
जई | गुड़ | |||||
मोलालिस आदि |
अतः उपरोक्त प्रकार से संतुलित आहार का निर्माण कर पशुओं को खिलाया जा सकता है ताकि उनके उत्पादन व स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव न पडे़।
कुपोषण के परिणाम -
- कुपोषण से बढते हुए पशु की बढवार में रूकावट या कमी आ जाती है।
- पशु कमजोर हो जाता है।
- पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
- पशु पाली में नहीं आता और आवे तो भी गर्भ नहीं ठहरता या गर्भपात हो जाता है।
- पशु का बच्चा कमजोर पैदा होता है।
- दुधारू पशु दूध कम देने लगता है।
दुधारू पशु का आहार - दूध देने वाले पशु के आहार निर्धारण में निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
- कम लागत पर अधिक दूध के लिए ऋतु अनुसार सालभर अधिक हरे चारे का उपयोग करें।
- वर्षभर हरा चारा प्राप्त करने की दृष्टि से एक एकंड़ सिंचित भूमि के तीन बराबर-बराबर भाग करें।
- एक भाग में - मक्का, चवला, मकचरी, खरीफ में जई, सरसों रबी में , मार्च तथा अप्रैल प्रारम्भ में मक्का, चंवला की दो फसलें लेवें।
- दूसरे भाग में एक से अधिक बार काटे जाने वाली फसलें जैसे- एम. पी. चरी, चवला, मकचरी, बजारी, खरीफ में तथा बरसीम, सरसों रबी में लेंवे।
- तीसरे भाग में बहुवर्षीय चारे की फसलें- जैसे संकर हाथी घास तथा रिजका लगावें।
- इस प्रकार प्रतिमाह 50 क्विंटल तथा वर्ष में लगभग 600 क्विंटल प्रति एकड़ हरा चारा उपलब्ध हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त जहाँ हरा चारा बहुतायत में उपलब्ध हो तो उचित समय पर काटकर हैं। या साईलेज बना लें।
जलग्रहण क्षेत्रों में सूखे व मोटे चारे की उपयोगिता बढा़ने हेतु निम्न तरीके अपनाकर पशुपालक अपने पशुओं से अकाल में भी अच्छा दूध उत्पादन कर सकते हैं।
चारे तथा कड़बी की कुटटी करना
कुटटी करके खिलाने के लाभ
- पशु अधिक मात्रा में चारा खाता है।
- पशु के मुँह में पाचन रस अधिक मात्रा में निकलता है।
- पशु के पेट में चिकनाई उत्पन्न करने वाले वाष्पशील वसीय अम्ल अधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं।
- पशु 20-25 प्रतिशत तक घटिया चारे को भी खा जाता है।
पानी में भिगोना -
गेहूँ, चना, जौ, जई आदि के भूसे को पानी में भिगोकर खिलाना लाभदायक रहता है।
इसके दो लाभ हैं-
- चारा मुलायम हो जाता है तथा
- पशु के पेट में पाये जाने वाले सूक्ष्म अणु जीवों को पाचन क्रिया करने के लिए काफी समय तथा सतह प्राप्त हो जाती हैं।
चारे का मिश्रण खिलाना -
फलीदर चारे जैसे- रिजका, बरसीम आदि अधिक स्वादिष्ट व पौष्टिक होते हैं। इन चारों को यदि गेहूँ के भूसे अथवा अफलीदार चारे जैसे- मक्का, बाजरा, जई आदि में 3:1 के अनुपात में खिलाने से अफलीदार चारे की पौष्टिकता में वृद्धि हो जाती है जिससे दूध उत्पापदन अधिक होता है।
यूरिया, शिरा और खनिज मिश्रित चारा -
यूरिया एक नाइट्रोजन युक्त रसायनिक खाद है- रूमनधारी पशु जैसे- गाय, भैंस, बकरी आदि के पेट में पाये जाने वाले जीवाणु, यूरिया अथवा अमोनिया को जीवाणुयुक्त प्रोटीन में बदल देंते हैं जिससे पशु के स्वास्थ्य व दूध में वृद्धि होती है क्योकिं सूखे चारे में सेल्यूलोज तथा हेमिसेल्यूलोज की अधिकता होती है तथा इनका अधिकतर भाग अपौष्टिक लिग्निन से जुडा़ होता हहै लेकिन यूरिया द्वारा सूखे चारे को उपचारित करने पर लिग्निन सेल्यूलोज व हेमीसेल्यूलोज से टूट कर बलग हो जाता है जिससे ऊर्जा शक्ति बढ़ जाती है तथा साथ ही पाचक प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ जाती है।
यूरिया उपचारित विधि -
- 10 क्रि.ग्रा. भूसा अथवा कड़बी व अन्य घासें
- 100 ग्राम यूरिया
- 250 ग्राम गुड़ या शिरा
- 50 ग्राम खनिज-लवण तथा
- 50 ग्राम नमक ( आयोडाईज )
यूरिया मोलासेस ( शीरा ) खनिज लवण की ईटं -
पदार्थ | मात्रा ( प्रतिशत ) |
मोलासेस (शीरा) | 38 |
यूरिया | 10 |
सीमेंट | 10 |
गेहूँ का चापड़ | 40 |
नमक | 1 |
खनिज लवण | 1 |
1
यूरिया मोलासेस ( शीरा ) खनिज-लवण की ईंट बनाना -
पशु प्रबन्धन - पशु को स्वस्थ रखने व उनसे स्वस्थ दूध प्राप्त करने के लिये उनको आरामदेय आवास व्यवस्था रखना जरूरी है।
पशु प्रजनन - पशुओं से निरन्तर व उनके जीवनकाल में अधिक से अधिक दूध प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि पशु प्रजनन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। पशु में सूखाकाल 2 माह से अधिक न हो तथा व्याहने के बाद 2-3 माह में पशु को फिर से गर्भधारण करवाना अत्यन्त आवश्यक है ताकि पशु अपने जीवनकाल में अधिक से अधिक बच्चे तथा दूध उत्पपादन कर सकें।
पशु स्वास्थ्य
- परजीव कीट नियंत्रण - समय-समय पर पशुओं कृमि उन्मूलन (डिवर्मिग ) करवानी चाहिये। इससे अन्तः परजीवियों का नियंत्रण किया जा सकता है। बाह्रय परजीवी जैसे को जूएँ, चिचडें आदि हेतु पशु चिकित्सक या कृषि विज्ञान केन्द्रों के विशेषज्ञों से सलाह लेकर दवाईयों का उपयोग करें।
- टीकाकरण - पशुओं में जहरबाद, गलघोंटू, माता, खुरपका, एवं आदि संक्रांमक रोगों के टीके समय पर लगवाने का कार्यक्रम अपनाएं।
अगर पशुपालक अपने जलग्रहण क्षेत्रों में पशुपालन को बढा़वा देकर उन्नत आयाम को अपनाकर पशुपालन करे तो निश्चित ही पशुपालन एक उपयोगी व कृषकों को आत्मनिर्भर बनाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकता है।
12.6 स्वपरक प्रश्न ( )
- कृषि विभाग कृषकों को क्या-क्या सुविधा देता है।
- जलग्रहण क्षेत्रों में पशुधन विकास व पशुपालन विभाग क्या योगदान दे सकता है?
12.7 सारांश ( )
यह इकाई मूलतया कृषि, उद्यान एवं पशुपालन विभागों में उपलब्ध कृषकों के लिए सुविधाओं को जलग्रहण विकास क्षेत्र में लेने के लिए एकीकृत प्रयास है।
12.8 संदर्भ सामग्री ( )
- जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन।
- बारानी क्षेत्रों की राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना हेतु जारी वरसा-मार्गदर्शिका।
- प्रशिक्षण पुस्तिका - जलग्रहण विकास एवं भूसरंक्षण विभाग द्वारा जारी।
- जलग्रहण मार्गदर्शिका- सरंक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा-निर्देश- जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग द्वारा जारी।
- जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल- जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग द्वारा जारी।
- कृषि मंत्रालय- भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल।
- ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास-हरियाली मार्गदर्शिका।
- जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग द्वारा जारी।
- विभिन्न परिपत्र- राज्य सरकार/जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग।
- इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री- जलग्रहण प्रकोष्ठ।
- कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा- जन सहभागिता मार्गदर्शिका।
- प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा विकसित सामग्री।
13. भारत सरकार द्वारा जारी नई कॅामन मार्गदर्शिका।