(द्वारा - वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 05)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-
||जलग्रहण क्षेत्र में अंकेक्षण एवं पारदर्शिता||
जैसा कि पूर्व के अध्यायों में बताया जा चुका है कि जलग्रहण विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के क्रियान्वयन का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों के सतत विकास एवं प्रबंन्धन के माध्यम से कृषि उत्पादन में वृद्धि, रोजगार के स्थानीय स्तर पर साधन उपलब्ध कराने के साथ साथ स्थानीय निवासियों के सामाजिक आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करना है। जलग्रहण विकास कार्यक्रमों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि कार्यक्रम क्रियान्वयनकर्ताओं का तालमेल, सम्पर्क एवं विश्वास स्थानीय जन समुदाय के याथ कितना प्रगाढ है। इस हेतु समाज के स्तर पर भी कार्यक्रम की समीक्षा नियमित रूप से किये जाने एवं तकनीकी के चुनाव में सहयोग दिये जाने का विशेष महत्व है। परियोजना से जुडे विभिन्न चरणों, जैसे श्रमिकों का नियोजन तकनीक का चुनाव, क्रियान्वयन पद्धति, निधियों का आवंटन एवं उपलब्धता, श्रमिकों को भुगतान, रिकार्ड संधारण इत्यादि में पारदर्शिता होना अत्यन्त जरूरी है। जिन जलग्रहण क्षेत्रों में स्थानीय जनता आगे आकर अपना सहयोग प्रदान करती हैं उन जलग्रहण क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती। इस अध्याय में हम सामाजिक अंकेक्षण से जुड़े विभिन्न बिन्दुओं, व्यवस्थाओं का अध्ययन करेंगा।
5.2 सामाजिक अंकेक्षण और पारदर्शिता
समुदाय के सदस्यों के बीच विरोधाभास कम करने के लिए ग्राम स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण और पारदर्शिता होना एक महत्वपूर्ण तकनीक हैं। इससे समुदाय में कुछ प्रभावशील व्यक्तियों की अपेक्षा सदस्यों के बहुमत को सशक्त बनाने में, अल्प संसाधन वाले परिवारों की सहभागिता को बढ़ाने में भी सहायता मिल सकिगी। कार्यक्रम में पारदर्शिता लाने की दृष्टि से निम्नलिखित 9 कदम उठाने चाहिए-
- विशिष्ट पहलुओं जैसे रणनीतिक योजना (स्ट्रेटेजिक प्लान) योजना के मुख्य बिन्दु, बेसिक सिडयूल आफ रेटस/स्टेण्डर्ड सिडयूल आफ रेटस, प्रगति विवरण आदि से सम्बन्धित पोस्टरों को दीवार पर लगाना।
- समुदाय के सदस्यों को परियोजना दृष्टिकोण (प्रोजेक्ट एप्रोच) रीतियों आदि के बारे में सदस्यों का अनुस्थापन (ओरियन्ट) करने की दृष्टि से प्रारम्भिक स्तर पर समुदाय के साथ अनेकों खुली बैठाकों का आयोजन।
- सहभागियों से प्रस्ताव प्राप्त करने हेतु औपचारिक प्रार्थना पत्र पद्धति लागू बरना।
- वाटर हार्वेस्टिंग जिनकी लागत अधिक है, के मामले में सम्बन्धित व्यक्तियों को चैक के माध्यम से भुगतान करना।
सम्बन्धित उपभोक्ताओं के परामर्श से प्रत्येक कार्य का तकनीकी प्राक्कलन तैयार करना।
- क्रियान्वयन कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व सम्बन्धित उपभोक्ताओं के अंशदान का सुनिचियन (उन मामलों के अतिरिक्त जिनमें कि उपभोक्ता श्रमिक के रूप में अपना अंशदान करते हैं)
- बी.एस.आर. के अनुसार श्रमिकों को पूर्ण भुगतान।
- क्रियान्वयन चरण के दौरान भौतिक और वित्तीय प्रगति की समीक्षा हेतु बार-बार जलग्रहण संस्था की बैठकें आयोजित करना।
- जलग्रहण संस्था को निर्णय करने का निकाय जबकि जलग्रहण समिति को उसके कार्यकारी निकाय के रूप में कार्य करने को बढ़ावा (फेसिलिटेट) देना।
5.3 सामाजिक अंकेक्षण एवं पारदर्शिता से सम्बन्धित राजकीय परिपत्र
राजस्थान सरकार द्वारा 3 दिसम्बर 1998 को एक परिपत्र जारी किया गया है इसके अन्तर्गत पंचायत अपने स्तर पर विभिन्न बैठकों में विचारणीय बिन्दु बनायेगी और इस पर अनिवार्य रूप से चर्चा की जावेगी। यह परिपत्र-सूचना के अधिकार के लिए हैं, जिससे सामान्य लोग भी गतिविधियों को जान सकें। परिपत्र का विवरण नीचे दिया जा रहा है।
राजस्थान सरकार
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग
क्रमांक एफ. 4 (4ग्राविप/विधि/95/ पार्ट-2/3376 जयपुर दिनांक 3 सितम्बर 1998
परिपत्र-1
राज्य सरकार द्वारा क्षेत्रों में विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के निर्माण एवं विकास कार्य कराये जाते हैं। इन निर्माण कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए जनसामान्य को उनके आवेदन पर वांछित सूचना उपलब्ध कराई जाने हेतु राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1996 के नियम 321 से 328 में प्रावधान किया गया है लेकिन यह महसूस किया गया है कि राज्य सरकार द्वारा निर्माण कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिये नियमों में प्रावधान कर दिये जाने के बावजूद भी जन-सामान्य को सूचना के अधिकार एवं निर्माण कार्य आदि से सम्बन्धित दस्तावेजों की प्रति प्राप्त करने के सम्बन्ध में अभी तक जानकारी नहीं है। सूचना के अधिकार एवं निर्माण कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए यह आवश्यक है कि उक्त प्रावधानों का व्यापक प्रचार एवं प्रसार किया जावे। इसके लिए निम्न कार्यवाही अपेक्षित है।
- जिला परिषद, पंचायत समिति, ग्राम पंचायत अपनी बैठकों के विचारणीय बिन्दुओं में सूचना के अधिकार एवं निर्माण कार्यों में पारदर्शिता लाने के बिन्दुओं को स्थाई विचारणीय किन्दु बनायें एवं इस पर अनिवार्य रूप से विस्तृत चर्चा की जावें।
- इसी प्रकार जब भी पंचायतों द्वारा ग्राम सभाओं का आयोजन किया जावें तो जन-सामान्य की उपस्थिति में सूचना के अधिकार एवं कार्यों के नियम 328 में किये गये प्रावधानों की जानकारी अवश्य दी जावें एवं निर्माण कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए निर्माण कार्य कहाँ-कहाँ चल रहे हैं? एवं कितनी-कितनी राशि स्वीकृत की गयी? यह जानकारी अवश्य उपलब्ध कराई जावे ताकि निर्माण कार्यों में किसी प्रकार के भ्रष्टाचार एवं अनियमितता की गुंजाइश नहीं रहे। राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 के नियम 328 तक इसका प्रावधान निम्न प्रकार किया गया हैं।
- निरीक्षण के लिए आवेदन
किसी पंचायति राज संस्थान के किसी भी रजिस्टर, पुस्तक फाइल या अभिलेख का निरीक्षण चाहने वाला कोई भी व्यक्ति निरीक्षण किये जाने वाले दस्तावेजों का उल्लेख करते हुये एक लिखित आवेदन प्रस्तुत करेगा और ऐसे अभिलेखों की तलाश के लिए 5 रूपये फीस अग्रिम जमा करायेगा। यदि आवेदन अत्यावश्यक हो तो निरीक्षण हेतु दुगनी फीस 10 रूपये सम्बन्धित कार्यालय में जमा करायेगा।
- अभिलेख इत्यादि की तलाश और निरीक्षण व आदेश
नियम 321 के तहत आवेदन पत्र प्राप्त होने पर तथा फीस जमा होने के पश्चात कार्यालय का प्रधान सम्बन्धित रजिस्टर, पुस्तक, फाइल या अभिलेख की तलाश करायेगा और अपने सामने रखवायेगा। निरीक्षण के लिए चाही गइ प्रविष्टियाँ या कागजात का परीक्षण करेगा और यदि वह उन्हें आक्षेपणीय या लोक हित नहीं समझे या ऐसा निरीक्षण प्रतिबन्धित न हो उसके निरीक्षण करने का आदेश करेगा।
- निर्माण कार्यों पर व्यय से सम्बन्धित सूचना
- प्रत्येक पंचायत/पंचायत समिति अपने मुख्यालय पर किसी सहज दृश्य स्थान पर रखे गये नोटिस बोर्ड पर गत 5 वर्षों के दौरान मंजूरशुदा और पूर्ण हुए कार्यों एवं निर्माणाधीन कार्यों को उन पर व्यय की गई रकम सहित प्रदर्शित करेगा।
- सम्बन्धित पंचायत/पचायत समिति ऐसे नोटिस बोर्ड पर कार्य का नाम, स्वीकृत राशि व्यय की गई रकम और पूर्ण किये जाने की तारीख दर्शाते हुए जन साधारण की जानकारी के लिए निर्माण स्थल पर भी प्रदर्शित करेगी।
- कोई भी व्यक्ति या स्वैच्छिक संगठन 5 रूपये जमा करवाकर ऐसे निर्माण कार्य से सम्बन्धित अभिलेखों के निरीक्षण के लिए आवेदन कर सकेगा और ऐसे मस्टरोल या वाउचर उसे दिखाये जा सकेगे। उसे एसी सूचना के बारे मे किसी पृथक कागज पर नोट करने की अनुमति दी जा सकेगी।
- निरीक्षण के दौरान पैन स्याही फाउंटेन पैन और इसी तरह की किसी अन्य चीज का उपयोग नही किया जावेगा अपितु टिप्पणियाँ पेंसिल से की जा सकेंगी और अभिलेख का निरीक्षण करने वाला व्यक्ति अभिलेख का निर्माण, विभाजन या विकृत नहीं करेगा।
- प्रतियों का दिया जाना
यदि नियम 34 के तहत तलाशी करने पर सम्बन्धित अभिलेख उपलब्ध हो जायें तो कार्यालय प्रधान/अध्यक्ष द्वारा उसकी प्रतिलिपियाँ उद्वरण देने का निर्णय करेगा तथा 200 शब्दों या उसके भाग के लिए 2 रूपये की दर से प्रतिलिपि फीस जमा करायेगा। अत्यावश्यक प्रतियाँ प्राप्त करने पर दो गुना फीस जमा करानी होगी।
- प्रतियों की तैयारी और जमा किया जाना
प्रतिलिपि फीस प्राप्त होने पर प्रतियों का उद्वरण तैयार कराये जावेंगे और कार्यालय प्रधान/अध्यक्ष या उसके द्वारा अधिकृत अन्य अधिकारी द्वारा जाँच के पश्चात प्रमणित की जावेंगी। ये प्रतियाँ स्वयं आवेदक तथा उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति अथवा द्वारा डाक स्टाम्प जमा करा दिये हों तो उसको डाक द्वारा भिजवा दी जावेंगी।
- प्रतियाँ देने का समय
प्रतियाँ साधारणतया चार दिन के भीतर कर दी जावेंगी तथा अत्यावश्यक प्रतियाँ 24 घण्टों के भीतर दे दी जावेंगी।
- अस्वीकृति के अधार
जब कोई निरीक्षण या प्रतियाँ दिया जाना लोक हित में उचित नहीं हो या कानूनन निषेध हो, तो कारण अंकित करते हुए उसके आवेदन को अस्वीकृत कर दिया जावेगा तथा तदानुसार आवेदक को सूचित कर दिया जावेगा। कार्यालय पत्राचार, कागजात और किसी ऐसे दस्तावेज जो स्वयं एक प्रतिलिपि हो, की कोई प्रति नहीं दी जावेगी।
- निरीक्षण/प्रतियाँ दिये जाने के आवेदनों का रजिस्टर
प्रत्येक पंचायती राज संस्था के कार्यालय में आवेदन प्रविष्टि का एक रजिस्टर रखा जावेगा जिसमें आवेदक स्वैच्छिक एजेन्सी का नाम, आवेदन की तारीख, प्रारूप 44 में की गई रकम अंकित की जावेंगी।
- निरीक्षण एवं प्रतियाँ देने के आवेदनों पर की गई कार्यवाही की मासिक रिपोर्ट
मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं सचिव, जिला परिषद प्रत्येक माह ग्राम पंचायत/पंचायत समिति में अभिलेखों के निरीक्षण एवं प्रतियाँ प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत हुए आवेदन एवं उन पर की गई कार्यवाही की मासिक रिपोर्ट ग्राम पंचायत एवं पंचायत समितियों में से संकलित कर विभाग को प्रस्तुत करेगें। सूचना में निरीक्षण एवं प्रतियाँ प्राप्त करने हेतु कुल किये गये आवेदन, आवेदनों के निस्तारण की स्थिति एवं लम्बित रहे आवेदनों का कारण रिपोर्ट करेंगे।
सभी निरीक्षण अधिकारी निरीक्षण के समय ऐसे रजिस्टर का निरीक्षण करेंगे। इस परिपत्र की अनुपालना मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद सुनिश्चित करेंगे।
उपरोक्त प्रावधानों के अनुरूप जन सामान्य द्वारा चाही गई सूचना के सम्बन्ध में सभी पंचायत समितियाँ-मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद के माध्यम से प्रति माह राज्य सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगी। प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट का प्रोफार्मा नीचे दिया जा रहा है।
विकास आयुक्त एवं प्रमुख शासन सचिव
प्रोफार्मा-1
क्र.सं | प्रति आवेदन करने वाले व्यक्ति का नाम | आवेदन करने का दिनांक | चाहे गये दस्तावेज की स्वीकृति | प्रति दिये जाने की दिनांक |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 |
प्रोफार्मा-2
कार्यालय पंचायत समिति....................... पंचायत समिति......................जिला परिषद............................
योजना का नाम | कार्य का नाम | स्वीकृति दिनांक | व्यय राशि | कार्य पूर्ण/अपूर्ण/निर्माणधीन/ बंद की स्थिति/कार्य पूर्ण होने के संभावित तिथि | |
दिनांक | राशि | ||||
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 |
परिपत्र-2
निदेशालय जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी परिपत्र दिनांक 8.11.2006 के तहत ग्रामीण विकास विभाग के परिपत्र संख्या प.6 (ग्रावि/2/96 पार्ट- दिनांक 7.5.01 से विभिन्न योजनाओं से सम्बन्धित जलग्रहण समितियों के अंकेक्षण हेतु दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं, ग्रामीण विकास विभाग के पंत्राक प. 13 (5) ग्रावि/सीए/जग्र/05 दिंनाक 3.3.05 में एक अंकेक्षक से अधिकतम 10 जलग्रहण समितियों का अंकेक्षण कराने की शर्त शामिल थी। इस शर्त को ध्यान में रखते हुए इस कार्यालय के पंत्राक 1252-1231 दिंनाक 17.7.06 में अकेंक्षकों का पैनल तैयार करते समय एक अंकेक्षक का अधिकतम 10 जलग्रहण समितियों का कार्य आंवटित करने की शर्त शामिल की गई।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषदों द्वारा जारी किये गये अकेंक्षक पैनल आदेशों में देखा जा रहा है कि उनके द्वारा प्रायः सनदी लेखाकारों को ही पैनल में सम्मिलित किया है, जबकि ग्रामीण विकास विभाग के उक्त परिपत्र में सनदी लेखाकार, सेवानिवृत लेखा सेवा के अधिकारी, अधीनस्थ लेखा के सेवा के सहायक लेखाधिकारी एवं सहकारी विभाग के सेवानिवृत ऐसे अधिकारी जो वाणिज्यिक कार्य करने वाली सहकारी संस्थाओं के अकेंक्षण का अनुभव रखतें हो, को अकेंक्षक नियुक्त होने के पात्र माना गया है। यदि उक्त प्रावधानों के अनुरूप प्रस्ताव मांगने के उपरान्त भी पर्याप्त संख्या में आवेदन प्राप्त नहीं होते हैं तो मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद अपने स्वविवेक के आधार पर एक अंकेक्षक को 10 से अधिक जलग्रहण समितियों के अकेंक्षण का कार्य आवंटित कर सकते हैं। यह प्रमुखा शासन सचिव, ग्रामीण विकास विभाग से प्राप्त निर्देशानुसार जारी किये गये हैं।
5.4 जलग्रहण परियोजना केअन्तर्गत लेखों का अकेंक्षण ( )
राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना अन्तर्गत निधि का एक बडा़ भाग ग्राम स्तर पर उन नयी संस्थागत व्यवस्थाओं को प्रवाहित किया जाता है, जिन्हें इतनी बडी राशि के उपयोग का पूर्व अनुभव नहीं है।समिति के सदस्यों को लेखा रखने का प्रशिक्षण देने के अतिरिक्त, आन्तरिक अकेंक्षण ( तीन महीने में एक बार और बाह्रय अकेंक्षण ( वर्ष में एक बार ) किये जाने की आवश्यकता है ताकि लेखों के रख-रखाव का कार्य उपयुक्त तरीके से सम्पादित हो सके। समितिया पंजीकरण अधिनियम के अन्तर्गत लेखों का वार्षिक अकेंक्षण अपेक्षित होगा। इस प्रयोजन हेतु जिला नोडल एजेन्सी चार्टर्ड लेखाकारों का एक पैनल तैयार करेगी, जिसे सी.ए.जी. द्वारा अनुमोदित किया जायेगा, उसमें से जलग्रहण संस्था परियोजना क्रियान्वयन संस्था एक नाम का चयन कर सकते हैं। यह जिला नोडल एजेन्सी को जारी निधि के वार्षिक महालेखाकार अकेंक्षण के अतिरिक्त होगा।इन दोनों ही स्तरों पर लेखों का रख-रखाव उपर्युक्त अकेंक्षणों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए किया जायेगा। समिति केसदस्यों को इस ओर उन्मुख करना आवश्यक है कि अकेंक्षण अनुच्छेदों को निपटाने का उत्तरदायित्व उन्ही पर हैं। अकेंक्षण अनुच्छेदों पर विचार-विमर्श और अनुवर्ती कार्यावाही जलग्रहण संस्था की खुली बैठक में सम्पन्न की जा सकेगी।उचित वित्तीय प्रबन्धन की दृष्टि से हर पर लेन-देन में पारदर्शिता के माध्यम से सामजिक अकेंक्षण भी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। अतः जलग्रहण संस्था द्वारा समस्त विकासात्मक लेन-देन को प्राथमिकता रूप से मासिक आधार पर अनुमोदित किया जाना चाहिए।
5.5 जलग्रहण से सम्बन्धित सूचना के अधिकार -( )
राजस्थान का 3/4 भाग असिंचित भू भाग कृषि उत्पादन हेतु पूर्णतः वर्षा पर निर्भर है। राज्य में वर्षा की कमी, अकाल की विभीषिका को देखते हुये वर्षा जल के संरक्षण कर कृषि उत्पादन में स्थायित्व लाना एवं आत्मनिर्भरता प्राप्त करना एवं महत्वपूर्ण चुनौती है। जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा विभिन्न जलग्रहण विकास परियोजनायें राज्य में क्रियान्वित की जा रही हैं। इन परियोजनाओं का क्रियान्वयन स्थानीय जनसमुदाय द्वारा कराया जाता है एवं भू मालिकों एवं भूमिहीन परिवारों के समूह बनाये जा कर गतिविधियां क्रियान्वित की जाती है।
जलग्रहण क्षेत्रों में परदर्शिता लाने के उद्देश्य से राज्य सरकार के स्तर से सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 4 (1)बी के अन्तर्गत हस्तपुस्तिका तैयार की गई है। इस पुस्तिका में आम जन को जलग्रहण क्षेत्रों के क्रियान्वयन से सम्बन्धित किस-किस प्रकार की सूचनाएं किस-किस विधि द्वारा किस-किस स्थान से प्राप्त हो सकती है, उसका विस्तार से उल्लेख किया गया गया है। निश्चित रूप से लोकतंत्र में सूचना के अधिकार की व्यवस्था को प्रभावी बनाने एवं आमजन में जलग्रहण विकास कार्यो के प्रति जागृति विकसित करते हुए पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से राज्य सरकार के स्तर से तैयार यह दस्तावेज अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
जलग्रहण विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन की रूपरेखा करने एवं वास्तविक कार्य कराये जाने के दौरान स्थानीय स्तर पर अधिकाधिक जनसहभागिता, प्रचार-प्रसार किया जाता है। इस सम्बन्ध में नागरिक अधिकार पत्र भी तैयार कर जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी कर दिया गया है। इससे जलग्रहण परियोजनाओं की कार्यप्रणाली को और अधिक पारदर्शी एवं सवेंदनशील बनाने में सहयोग प्राप्त हो रहा है।
राज्य के समस्त निवासियों, जनप्रतिनिधियों, गैर-सरकारी संस्थाओं, अन्य सम्बन्ध विभागों, इत्यादि के लिये सूत्रना के अधिकार की व्यवस्था अत्यन्त उपयोगी जागृति होती है। कार्यक्रम क्रियान्वयन के दौरान अपेक्षित जनसहयोग प्राप्त करने, गतिविधियों के प्रचार-प्रसार हेतु तथा अथाव अभियोग निवारण हेतु भी यह मददगार जागृति होती है विद्यार्थी अपने अभ्यास सत्र के दौरान उक्त दस्तावेज का अवलोकन कर सकते हैं । सूचना के अधिकार में समाविष्ट की गई मुख्य बातों की जानकारी निम्न प्रकार से है।
जलग्रहण क्षेत्र से सम्बन्धित विषयों के संबन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिये निम्नानुसार संस्था प्रभारियों/अधिकारियों/कार्यालयों से सम्पर्क किया जा सकता है-
क्र.सं | स्तर जहाँ सूचना प्राप्त हो सकती है | संस्था प्रभारी/अधिकारी का नाम | कार्यालय का नाम |
1. | जलग्रहण स्तर | अध्यक्ष, जलग्रहण समिति अध्यक्ष, जलग्रहण संस्था सरपंच | जलग्रहण संस्था जलग्रहण समिति ग्राम पंचायत |
2. | पंचायत समिति स्तर | विकास अधिकारी सहायक अभियंता कनिष्ठ, अभियंता | पंचायत समिति |
3. | जिला स्तर | अधिशासी अभियंता (भू संसाधन) ग्रामीण विकास प्रकोष्ठ, जिला परिषद | जिला परिषद |
4. | राज्य स्तर | आयुक्त | जलग्रण विकास एवं भू संरक्षण, राजस्थान, जयपुर |
सूचना प्राप्त करने के सम्बध में राजस्थान सरकार के गृह (गु्रप-5 ) विभाग के आदेश क्रमांक एफ.9(2) ग्रुप-5/05 दिनांक 14.10.2005 अनुसार निर्धारित शुल्क व कार्यालय सहित अन्य विवरण निम्नानुसार है-
सूचना अभिप्राप्त करने के लिए आवेदन फीसः-10 रू
5.5.1 विभिन्न प्रकार के अभिलेख प्राप्त करने हेतु प्रक्रिया
नाम अभिलेख | कार्यालय जहां से अभिलेख का निरीक्षण/नकल प्राप्त की जा सकती है | प्रतिलिपि के कागज का आकार | नकल प्राप्त करने हेतु निर्धारित शुल्क | उक्त स्तर पर सुनवाई नहीं हो तो कार्यालय का नाम जहां नागरिक आवेदन कर सकता है |
कार्यो , से सम्बन्धित स्वीकृति के आदेशों की प्रतिलिपियाँ | उप निदेशक/अधिशासी अभियंत (भू संसा. ) | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | आयुक्तालय/जिला परिषद |
कार्यादेशों, सामग्री सामग्री क्रय आदेशों एवं स्वीकृति प्राक्कलन की प्रतिलिपियां | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/सरपंच ग्राम पंचायत/ पंचायत समिति/उप निदेशक अधिशासी अभियंता (भू संसा.) | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/उप निदेशक अधिशासी अभियंता (भू संसा.) |
बजट आबंटन सम्बन्धित सूचना | उप निदेशक अधिशासी अभिंता ( भू संसा. ) | ए-4 साईज | 2 रू. | आयुक्तालय/जिला परिषद |
प्राप्ति व्यय पंजिका, चैक बुक रजिस्टर, बैंक प्राप्ति पंजिका, बही खाता की प्रतिलिपियां | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
रसीद पुस्तिकाओं की पंजिका, रसीद पुस्तिका की प्रतिलिपियां | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
भुगतान किए गये कार्य/क्रय से संबन्धित माप पुस्तिका की प्रतिलिपियां | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
श्रमिकों की दैनिक उपस्थिति एवं भुगतान पंजिका | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
परिसंपति पंजिका की प्रतिलिपियां | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
बैठक कार्यवाही पंजिका की प्रतिलिपि | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
स्वयं सहायता समूह पंजिका की प्रतिलिपि | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत सहायता समूह | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
चारा/फसल प्रदर्षन पंजिका की प्रतिलिपि | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
पौधें वितरण नर्सरी पंजिका की प्रतिलिपियाँ | समिति/संरपच ग्राम अध्यक्ष जलग्रहण पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
कृषक हिस्सा राषि पंजिका की प्रतिलिपियाँ | अध्यक्ष जलग्रहण समिति/संरपच ग्राम पंचायत | ए-4 साईज ए-3 साईज | 2 रू. प्रति पृष्ठ | पंचायत समिति/जिला परिषद |
आवेदक की फीस: धारा 6 की उप धारा (1) के अधीऩ सूचना अभिप्राप्त करने के किसी अनुरोध के साथ समुचित रसीद के पेटे नकद के रूप में या लोक प्राधिकारी को संदेय मागंदेय ड्राफ्ट या बैंकर्स चैक के रूप में दस रूपये की आवेदन फीस दी जावेगी।
5.5.2 सूचना देने के लिए फीस ( )
(1) धारा 7 की उप धारा (1) के अधीन सूचना देने के लिए समुचित रसीद के पेटे नकद के रूप में या लोक प्राधिकारी को संदेय मांगदेय ड्राफ्ट या बैंकर्स चैक के रूप में फीस निम्नलिखित दरों से प्रभावित की जायेगी-
(क) बनाये गये या नकल किये गये प्रत्येक पृष्ठ (ए-4 या ए-3 आकार के कागज में ) के लिए दो रूपये
(ख) बडे़ आकार के कागज में किसी प्रतिलिपि का वास्तविक प्रभार या लागत कीमत।
(ग) सैम्पल या माडल के लिए वास्तविक लागत कीमत, और
(घ) अभिलेखों के निरीक्षण के लिए, प्रथम घण्टे के लिए कोई फीस नहीं और पश्चात प्रत्येक 15 मिनट या उसके भाग के लिए उसके भाग के लिए पांच रूपये की फीस
(2) धारा 7 की उपधारा (5) के अधीन सूचना देने के लिए समूचित रसीद के पेटे नकद के रूप में या लोक प्राधिकारी को संदेय मागंदेय ड्राफ्ट या बैंकर्स चैक के रूप में फीस निम्नलिखित दरों से प्रभारित की जायेगी-
(क) डिस्क या प्लोपी में दी गयी सूचना के लिए प्रति डिस्क या प्लोपी 50 रू. और
(ख) मुद्रित रूप में दी गयी सूचना के लिए ऐसे प्रकाशन केलिए नियत कीमत पर या प्रकाशन से उद्वरणों को फोटो प्रति के प्रत्येक पृष्ठ के लिए 2 रूपये।
5.5.3 जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा क्रियान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं के विस्तृत उद्देश्य Ð(मिशन) निम्न प्रकार हैं:-
- प्रत्येक चयनित जलग्रहण क्षेत्र में भूमि का संरक्षण करने के उपाय करना ताकि भू-क्षरण को कम करके कृषि उत्पादन व आमदनी बढाई जाए।
- जल-संसाधनों के विकास के लाभ के लिए जलग्रहण प्रबंन्धन, संरक्षण व प्रगति को बढाना।
- जलग्रहण क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाएं जैसे-सूखा आदि को प्राकृतिक संसाधनों को बढाव देकर रोकथाम करना।
- जलग्रहण क्षेत्र के सामान्य आर्थिक विकास में संसाधनों एवं लाभान्वितों का स्तर बढाना ताकि क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न समाज के लोगों में असमानता कम हो सके।
- प्राकृतिक संसाधनों के समक्ष उपयोग के लिए जलग्रहण क्षेत्र के सामुहिक संगठन को मजबूत बनाना ताकि वे विकास कार्यक्रमों को आगे बढा़ सके।
- रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाना।
5.5.4 जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग की स्थापना का संक्षिप्त इतिहास
राज्य में वर्ष 1957 से भू-संरक्षण कार्य कराए जा रहें है। इनमें से अधिकांश कार्य मरू
विकास कार्यक्रम एवं सूखा सम्भावित क्षेत्र कार्यक्रम के तहत ही कराये जा रहे थे।
- 7 वीं पंचवर्षीय योजना के काल में बारानी क्षेत्र पर जलग्रहण के आधार पर कार्य कराया जाना प्रारम्भ किया गया।
- 8 वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत सरकार द्वारा शुष्क खेती पर विशेष ध्यान दया गया और इस हेतु वरीयता के आधार पर वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी गई।
- भू-सरंक्षण कार्य कृषि विभाग के अधीन ही कराये जा रहे थे।
- भू एवं जल संरक्षण के महत्व को देखते हुए यह महसूस किया गया कि बारानी क्षेत्र विकास हेतु पृथक से एक विभाग का गठन किया जाए।
- वर्ष 1990-1991 में पृथक से निदेशालय जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण के नाम से निदेशालय का गठन किया गया ।
- राज्य सरकार की आज्ञा क्रमांक एफ 4 (66) पं.रां/पी.सी./2002/565 दिंनाक 1916.03 के क्रम में आदेश क्रमांक प.14 (27) कृर्षि-196 पार्ट-दिनांक 02.07.03 के द्वारा इस विभाग का प्रशासनिक नियंत्रण पंचयती राज विभाग के अधीन किया गया तथा जलग्रहण विकास कार्य जिला परिषदों को हस्तानान्तरित किया गया।
- मंत्रीमण्डल सचिवालय द्वारा जारी स्थायी आदेशानुसार निर्णय लेने की प्रक्रिया का निर्धारण किया गया है।
5.5.5 लोक प्राधिकरण को कार्य दक्षता बढा़ने हेतु सहयोग की अपेक्षाएं
विभाग द्वारा संपादित की जा रही विभन्न जलग्रहण विकास परियोजनाओं में कार्यो की गुणवत्ता एवं स्थायित्व सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यह जरूरी है कि स्थानीय जन समुदाय का योजना की तैयारी, क्रियान्वयन एवं रखरखाव सहित प्रत्येक सहित प्रत्येक स्तर पर सक्रिय सहयोग प्राप्त होवें।
जलग्रहण परियोजनाओं के वास्तविक क्रियान्वयन से पहले प्रारंभिक चरण में ( प्रथम 2 वर्ष ) स्थानीय लाभार्थीयों को व्यापक आमुखीकरण प्रशिक्षण तथा विषय परक दक्षता वृद्धि प्रशिक्षण प्रदान किये जाते हैं।
5.5.6 जन सहयोग सुनिश्चित करने केलिए विधि/व्यवस्था
ग्रामीण विकास की जलग्रहण योजनान्तर्गत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और गरीबी के रेखा के नीचे के लाभान्वित कृषक की निजी भूमि पर करवाये गये कार्य की लागत का कम से कम 5 प्रतिशत अंशदान के रूप में लिया जाता है। सामुदायिक सम्पत्ति के सम्बन्ध में अंशदान सभी लाभर्थियों से व्यय की गई राशि विकास लागत की 5 प्रतिशत प्राप्त किया जा सकता है।
बरसा जन सहभागता मार्गदर्शिका में राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजनान्तर्गत लाभार्थी से अंशदान निजी गतिविधियों में 10 प्रतिशत तथा सामुदायिक गतिविधियों में 5 प्रतिशत निर्धारित है। अनुसूचित जाति जन जाति हेतु यह अंशदान 5 प्रतिशत निर्धारित हैं।
5.5.7 भारत सरकार द्वारा नई कामन मार्गदर्शिका के अनुसार लाभार्थी अंशदान
जलग्रहण समिति के जरिये ग्रामसभा उपयोगकर्ताओं द्वारा चुकाये जाने वाले शुल्क को एकत्र करने के लिए व्यवस्था बनायेगी। भूमिहीनों, संसाधनहीन या विकलांग (डिसएबल्ड )/ऐसे परिवार जिनकी मुखिया विधवा हो, से निजी या सार्वजनिक भूमि पर किये गये कार्य के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जायेगा। परियोजना के दौरान सजिृत परिसम्पत्तियों के रख-रखाव हेतु डब्ल्यू, डी., एफ, (जलग्रहण विकास कोष) में उपयोगकर्ता शुल्क जमा किया जायेगा।
जलग्रहण विकास कोष (डब्ल्यू. डी. एफ.)
जलग्रहण परियोजनाओं के लिए ग्राम चयनित करते समय आवश्यक शर्तो में से एक डब्ल्यू. डी. एफ. में व्यक्तियों का अंशदान देना है।
जलग्रहण विकास कोष में अंशदान
गतिविधि | गैर अनुसूचित जाति/जनजाति, लघु व सीमान्त कृषकों से लिये जाने वाला अंशदान | गैर अनुसूचित जाति/जनजाति, लघु व सीमान्त कृषकों से लिये जाने वाला अंशदान |
प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कार्यो हेतु जो कि सिर्फ निजी भूमि पर किये गये हों। | कुल लागत का 10प्रतिशत | कुल लागत का 5प्रतिशत |
सघन लागत वाली कृषि व्यवस्थाओं जैसे कि एक्वाकल्चर, उद्यानिकी, कृषि वानिकी, प्षुपालन आदि जो कि व्यक्तिगत लाभार्थी कि निजी भूमि पर उसके लाभ हेतु किये गये हों। | कुल लागत का 40प्रतिशत व्यक्ति द्वारा अंशदान व 60प्रतिशत परियोजना से देय होगा। लाभार्थी हेतु परियोजना अंश। अधिकतम परियोजना के लिए लागू मानक इकाई लागत नार्मस का दुगुना हो सकता है। | कुल लागत का 20प्रतिशत व्यक्ति द्वारा अंशदान व 80प्रतिशत परियोजना से देय होगा। लाभार्थी हेतु परियोजना अंश। अधिकतम परियोजना के लिए लागू मानक इकाई लागत नार्मस का दो गुना हो सकता है। |
उपयोगकर्ताओं द्वारा चुकाये जाने वाले शुल्क को एकत्र करने के लिए व्यवस्था बनाने का कार्य | ग्रामसभा ( डब्ल्यू, सी, के जरिये ) |
यह अशंदान कार्य क्रियान्वित करते समय नकद अथवा स्वैच्छिक श्रम के रूप में स्वीकार्य होगें। स्वैच्छिक श्रम के मामले में श्रम को नकद कीमत ( मोनेटरी वैल्यू ) जलग्रहण परियोजना खाते से डब्ल्यू.डी.एफ. बैंक खाते में स्थानान्तरित कर दी जावेगीं। डब्ल्यू. सी. एवं डब्ल्यू. डी. एफ. बैंक का खाता पृथक-पृथक होगा।
5.5.8 मुख्य कार्यालय तथा विभिन्न स्तरों पर कार्यलयों के पत्ते
राज्य स्तर पर -
आयुक्तालय जलग्रहण विकास एवं भ-संरक्षण, पंत कृषि भवन, जयपुर।
जिला स्तर पर-
मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद,
जिला ...................................................
पंचायत समिति स्तर पर -
विकास अधिकारी, पंचायत समिति.....................................
जिला ...........................
5.5.9 लोक सूचना अधिकारियों का विवरण ( )
निदेशालय जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण में कार्यरत अधिकारियों को लोक सूचना अधिकारियों, सहयक लोक सूचना अधिकारियों घोषित किया जाकर विभागीय अपीलेट अथोरिटी के संबध में व्यवस्था स्थापित की गई है। पारदर्शिता के साथ-साथ जनसहयोग एवं विश्वास हासिल करने का यह सशक्त माध्यम है।
जिला परिषद स्तर पर समस्त जिला परिषदों के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी को राज्य लोक सूचना अधिकारी मनोनीत किया गया है।
इसी प्रकार पंचायत समिति के स्तर पर विकास अधिकारी एवं ग्राम स्तर पर सचिव को राज्य लोक सूचना अधिकारी मनोनीत किया गया है।
5.5.10 निर्णय लेने की प्रक्रिया ( )
(क) मंत्री मण्डल सचिवालय द्वारा जारी स्थाई आदेशानुसार।
(ख) ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के कार्य सम्पादन हेतु स्थाई आदेश क्रमांक एफ17 (17)जग्राविस/तक/एस.ओ.पी./2004/6049-493 दिंनाक 2.09.04 से राजस्थान कार्य पद्धतिनियमों के नियम 21 के अन्तर्गत विभाग द्वारा सम्बंन्धित कार्यो के निष्पादन की कार्यवाही की जाती
- वर्तमान में विद्यमान एकल पत्रावली पद्धतिके अन्तर्गत विभाग से संबधित कार्य निदेशालय के शाखा प्रभारी/अतिरिक्त निदेशक के माध्यम से परीक्षण उपरान्त विभागाध्यक्ष के द्वारा शासन सचिव, पंचायती राज को प्रस्तुत किये जायेंगे। प्रशासनिक विभाग में जहाँ आवश्यक हुआ एक शासन सचिव (भू-संसाधन ) से टिप्पणी परामर्श की कार्यवाही सम्पादित की जायेगी।
- माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय में पंचायती राज संस्थाओं के सुदृढी़करण के परिक्षेप में पारित विभिन्न प्रशासनिक आदेशों को चुनौती देते हुए दायर रिट याचिकाओं के अन्तिम निर्णय के उपरान्त इस आदेश में यथा आवश्यक संशोधन किये जा सकेगे।
- इस आदेश के अनुसार मंत्री द्वारा सामान्यः निपटाये जाने वाले मामलों को मुख्यालय से मंत्री की अनुपस्थिति में जहाँ मंत्री के लौटने का इन्तजार करना मामले की प्रकृति को देखेत हुए संभव नही हो तो प्रमुख शासन सचिव उनकी अनुपस्थिति में निपटा सकेंगे, बाद में मंत्री के ध्यान में ऐसे प्रकरण लाये जाने चाहिए।
- स्थायी आदेश के मुताबिक प्रमुख शासन सचिव की अनुपस्थिति में शासन सचिव, पंचायती राज एवं दोनों की अनुपस्थिति में मामलों को आयुक्त एवं पदेन विशिष्ट शासन सचिव निपटा सकते हैं।
- प्रत्येक मामलों में जो नोट के क्रमांक 3 से 4 तक के निपटाये गये प्रकरणों की शीघ्रतिशीघ्र स्थायी आदेश के अन्तर्गत मामलों को निपटाने में सक्षम अधिकारी से अनुमोदन कराया जायेगा।
- इस अनुसमची में जिन मामलों का जिक्र नहीं आया है, ऐसे महत्वपूर्ण मामलों को जो आवश्यक समझे जाये, मंत्री के ध्यान में लाया जावें।
- वे समस्त मामले जिसमें वर्तमान कानूनों, स्थायी अथवा सामान्य आदेश और राज्य सरकार की स्वीकृति नीति में शिथिलता दी गई है/ दी जानी हो, मंत्री को प्रस्तुत की जाये।
- जो आईटम इसमें वर्णित हो, जिनका स्थायी आदेशों में विवरण नहीं है, उन्हें प्रमुख सचिव/मंत्री के समक्ष प्रस्तुत किया जावें।
5.5.11 प्रत्येक अभिकरण को आवंटित बजट ( सभी योजनाओं व्यय प्रस्तावों तथा धन वितरण की सूचना )
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित जलग्रहण विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत रू. 6000/-प्रति है() की दर से परियोजना स्वीकृत की जाती है जिसकी अधिकतम लागत डी0डी0पी0 एवं डी0पी0ए0पी0 में 500 है() क्षेत्रफल हेतु 30.00 लाख रू. हो सकती है। बंजर भूमि विकास परियोजना के अन्तर्गत जलग्रहण परियोजनाएं मेक्रो जलग्रहण आधार पर स्वीकृत की जाती है जिनका क्षेत्रफल 6000 से 10000 है() हो सकता । प्रति हैक्टेयर लागत 6000/- निर्धारित है।
कृषि मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के अन्तर्गत 8 प्रतिशत से कम ढाल वाले क्षेत्रों हेतु रू. 4500/- प्रति है() तथा 8 प्रतिशत या अधिक ढाल वाले की क्षेत्रों हेतु रू. 6000/- प्रति है() की दर से परियोजना स्वीकृत की जाती है जिसका अधिकतम 12000/- निर्धारित कर दी गई है तथा उपचार हेतु चयनित जलग्रहण क्षेत्र का क्षेत्रफल वास्तविक आधार पर 5000 हैक्टेयर के स्थान पर मेक्रो अथवा माइक्रों के रूप में लिया जा सकता है।
सूचना का प्रकार ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वित्त | पोषित जलग्रहण विकास कार्यक्रमों, (डी.डी.पी , डी. पी. ए. पी., आई, डब्ल्यू, डी, पी. ) | कृषि मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना |
कार्य प्रारम्भ होने का दिनांक | भारत सरकार की स्वीकृति का दिनांक | परियोजना क्रियान्वयन संस्था के नियोजन से 3 माह की अवधि |
प्रस्तावित बजट | 500 है () क्षेत्रफल हेतु रू. 30.00 लाख, कामन मार्गदर्षिका के अनुसार 60.00 लाख | 500 है () क्षेत्रफल हेतुरू. 22.5 लाख, अथवा 30.00 लाख कामन मार्गदर्षिका के अनुसार 60 .00 लाख |
स्वीकृति बजट | स्वीकृति लागत अनुसार | स्वीकृति लागत अनुसार |
शासन द्वारा प्रदत्त किस्तें | 5 वर्शो में किस्तें देय | सामान्यतः वर्ष में 2-3 बार |
कुल व्यय | परियोजना की पूर्णता पश्चात | परियोजना की पूर्णता पश्चात |
कार्य गुणवत्ता एवं समापन करवाने लिए जिम्मेदार अधिकारी | मुख्य कार्यकार अधिकारी, जिला परिषद बी0 डी0 ओ0 पंचायत समिति | मुख्य कार्यकार अधिकारी, जिला परिषद बी0 डी0 ओ0 पंचायत समिति |
5.5.12 इलेक्ट्रॅानिक रूप में उपलब्ध सूचनाएं ( )
जलग्रहण विकास कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन एवं प्रगति के नियमित प्रबोधन हेतु राज्य में प्रत्येक स्तर पर सघन प्रयास किये जाते हैं। जलग्रहण पंचायत समिति स्तर से विभिन्न सूचनाएं जिला स्तर पर एवं जिला स्तर से विभिनन सूचनाएं राज्य जिला स्तर पर प्रत्येक माह मंगवाई जाती है। सूचनाओं की तैयारी, प्रस्तुतीकरण एवं सम्प्रेक्षण में इलेक्ट्रॅानिक माध्यमों का प्रयोग किया जाता है।
5.5.13 सूचना प्राप्त करने के लिए नागरिकों को उपलब्ध सुविधाओं का विवरण
- पुस्तकालय- आयुक्तालय, बंजर भूमि, जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण कार्यालय पंत कृषि भवन, जनपथ जयपुर में स्थित है। इस भवन में कृषि विभाग का एक पुस्तकालय उपलब्ध है जिसमें बंजर भूमि, जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण गतिविधियों से संबन्धित विभिन्न प्रकार का तकनीकी वानस्पतिक साहित्य जैसे- पुस्तकें, मासिक एवं पाक्षिक पत्रिकाएं नियमित रूप से पुस्तकालय में उपलब्ध रहती हैं।
- नाटक/नुक्कड़- बंजर भूमि, जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण की विभिन्न गतिविधियों एवं उपयोगिता के बारे में जलग्रहण क्षेत्रों में प्रभात फेरियां, रैलियां, कठपुतली शो इत्यादि का समय-समय पर आयोजन किया जाता है तथा वर्ष में एक बार भू सरंक्षण सप्ताह किसी एक जिले में आयोजित किया जाता है जिसमें जलग्रहण विकास का सम्पूर्ण प्रचार-प्रसार नारों, पम्पलेट्स, लिफलेट्स समूहगान इत्यादि माध्यमों से किया जाता है।
- अखबारों के द्वारा-बंजर भूमि, जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण के अन्तर्गत कराये गये अच्छे, कार्यो की सफलता की कहानियां हर जिले में तैयार की जाती है और इनका समय-समय पर अखबारों, विकास पत्रिकाओं इत्यादि में प्रकाशन कराया जाता है।
- प्रदर्शनी - जिला एवं राज्य स्तर पर आयोजित होने वाले कृषि मेंलों एवं प्रदर्शनियों में विभाग द्वारा सक्रिय रूप से भाग लेते हुये जलग्रहण विकास की विभिन्न गतिविधियों एवं महत्व के बारे में जानकारी आम जन तक पहुँचायी जाती हैं।
- सूचना पटल- हर जलग्रहण क्षेत्र में जलग्रहण विकास कार्यक्रम का एक सूचना पटल स्थापित किया जाता है जिसमें परियोजना के आरम्भ होने की तिथि, क्षेत्रफल, अनुमानित लागत, कराये जाने वाले कार्यक्रमों का विवरण इत्यादि का उल्लेख किया जाता है।
- अभिलेखों का निरीक्षण-जलग्रहण क्षेत्रों की मार्गदर्शिका के अनुसार विभिन्न प्रकार के अभिलेख विभिन्न स्तरों पर संधारित किये जाते हैं। समय-समय पर विभागीय अधिकारीयों द्वारा अभिलेखों का निरीक्षण किया जाता है।
- दस्तावेजों की प्रति प्राप्त करने की व्यवस्था-अध्याय 1 में विस्तृत रूप में उल्लेख किया जा चुका है।
- विभागीय पुस्तिका (मैनुअल)- विभाग द्वारा विभिन्न तकनीकी, प्रशासनिक एवं वित्तीय जानकारियों हेतु समय-समय पर विभागीय मैनुअल प्रकाशित किया जाता है। जिनमें राज्य में जलग्रहण विकास की उपलब्धियाँ प्रशिक्षण पुस्तिका, विभागीय कम्पैण्डियम, विभिन्न प्रकार के बनाये जाने वाले भू संरक्षण ढाँचों के तकनीकी मापदण्ड इत्यादि से संबधित सूचना निहित होती है।
- लोक प्राधिकरण की वैवसाइट - जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग की वैवसाइट तैयार है जिसका पता निम्नानुसार है-............................................................ अन्य प्रचार-प्रसार के साधन- विभाग की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी एवं महत्व के प्रचार-प्रसार हेतु प्रिन्ट मीडिया एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के द्वारा अच्छे कार्यो की सफलता की कहानियों का प्रसारण रेडियों एवं टेलीविजन द्वारा कराये जाने की कार्यवाही प्रगति पर है।
5.5.14 जलग्रहण विकास कार्यो में जनभागीदारी एवं सशक्तिकरण
सार्वजनिक भूमि पर स्थानीय लोगों को सम्मिलित नहीं करते हुए विभाग द्वारा कार्य नहीं करवाए जाने पर अक्सर मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं। अनुभव बताता हैं कि मानव की आधारभूत सुविधाओं की पूर्ति के लिए स्थानीय समस्याओं को हल करने हेतु स्थानीय समुदाय की जनभागीदारी आवश्यक है। अतः सार्वजनिक भूमि पर स्थानीय लोगों के माध्यम से विकास कार्यो को कराये जाने का तरीका अपनाया गया ताकि कार्यो के स्थायित्व को सुनिश्चित किया जा सके। इसके लिए लाभान्वितों की समिति गठित की जाती है। जो सरकारी तंत्र के बजाय स्वयं विभागीय कार्य कराती है। यूजर्स समिति का गठन चुनाव द्वारा होता है। यूजर्स समिति का दायित्व होता है कि स्थानीय समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनको हल करने के लिए विभागीय अधिकारियों से सामंजस्य रखते हुए सार्वजनिक सम्पत्ति पर विकास कार्य करवाए तथा उनकी देख-भाल करें।
परियोजना में जनसमुदाय को परियोजना से लाभ उठाने एवं इसकी तैयारी के क्रम में स्थानीय जन- समुदाय की क्षमता का निर्माण, योजना का प्रचार-प्रसार, क्रियान्वयन प्रारम्भ करने के लिए (ताकि जनसमुदाय अपने हाथों से अपना भविष्य संवार सकें ) प्रंबधक घटक अन्तर्गत विभिन्न पहलुओं से परिचित हो, सफलतम जलग्रहण क्षेत्रों के भ्रमण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
योजना में प्रवेश बिन्दु गतिविधि अन्तर्गत स्थानीय जनता की आकांक्षा के अनुरूप अधिकतम 3 प्रतिशत राशि से जनोपयोगी कार्य यथा भवन निर्माण, सड़क निर्माण तलाई-खुदाई आदि किये जाते हैं। यह कार्य स्थानीय ग्रामीणों एवं पी. आई. ए. के मध्य एक कडी़ का कार्य कर उन्हें आपस में जोड़ता है। योजना के अन्तर्गत दो प्रकार के समूह ग्राम/जलग्रहण स्तर पर गठित करवाये जातें हैं, जैसे स्वयं सहायता समूह भूमिहीन एवं सीमांत कृषकों का एवं घरेलू महिलाओं का ), उपभोक्ता समूह ( चयनित जलग्रहण में आने वाले उपभोक्ताकर्ताओं का ) समूह गठन में ग्राम स्तरीय सामुदायिक संगठनकर्ता की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
5.5.15 जलग्रहण विकास कार्यो में प्रबोधन एवं मूल्यांकन ( )
जलग्रहण विकास एवं भू सरंक्षण विभाग के तहत संचालित विभिन्न योजनाओं के अधीन क्रियान्वित प्रत्येक कार्यकलाप का भैातिक एवं वित्तीय मूल्यांकन हर माह किया जाता है। इसके साथ ही अग्रिम कार्ययोजना एवं उसकी क्रियान्वित के संबध में आवश्यक तैयार की जाती है। निदेशक, जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग की अध्यक्षता में क्षेत्रीय अधिकारियों के साथ समीक्षात्मक बैठक प्रत्येक माह के प्रथम एवं तृतीय सोमवार को प्रमुख शासन सचिव, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग की अध्यक्षता में निदेशालय स्तर पर आयोजित की जाती है, जिसमें योजनाओं की क्रियान्वित एवं प्रगति पर विस्तार से विचार-विमर्श किया जाता है। अगर कार्यो कीक्रियान्वित में कोई समस्या अथवा रूकावट पैदा होती है तो उसके उपयुक्त निराकरण के उपाय किये जाते है। उनसे प्राप्त परिणामों का जिला एवं राज्य स्तर पर मूल्यांकन किया जात है । प्रबोधन इकाई के माध्यम से विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत क्रियान्वित कार्यकलापों का लक्ष्यों के अनुरूप का क्या प्रभाव हो रहा है इसका आंकलन किया जाता है। परियोजना प्रबन्धन में आवश्यक सुधार हेतु उपयुक्त निर्णय लिये जाते हैं।
5.5.16 जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण मुख्यालय एवं फील्ड स्तर का संगठन/ढाँचा निम्नानुसार है:
प्रभारी मंत्री-ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज
राज्य मंत्री
अतिरिक्ति मुख्य सचिव एवं विकास आयुक्त
प्रमुख शासन सचिव ( ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज )
आयुक्त-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण
विशिष्ट सचिव ( भू-संसाधन ) अति. निद. (प्रथम) अति. निदे. (द्वितीय ) संयुक्त निदेशक (एम.ओ.ए.पी.)
संयुक्त निदेशक सयुंक्त निदेशक संयुक्त निदेशक व. लेखाधिकारी
(माॅनीटरिगं, इनफोरमेशन, (मूल्यांकन) ( परियोजना सृजन ) (प्रशासन)
जिला परिषद पंचायत पंचायत
(32) (230)
5.6 जलग्रहण विकास के चरण ( )
जलग्रहण विकास कार्यक्रम लागू करने के विभिन्न चरण इस प्रकार है। यह सभी चरण के अनुसार प्रगाति को ध्यान में रखते हुए निशान लगा कर यह देखा जा सकता है कि जलग्रहण विकास परियोजना कहाँ तक पहुँची है ?
- जलग्रहण विकास दल का गठन।
- जलग्रहण विकास दल का एकीकृत जलग्रहण विकास के बारे में प्रशिक्षण।
- जलग्रहण क्षेत्र का चयन।
- प्रवेश बिन्दु गतिविधि के लिए परियोजना स्वीकृत होने के 6 माह के अन्दर-अन्दर कार्ययोजना प्रस्तुत की जाएगी व प्रथम वर्ष में इसे पूरा किया जाना आवश्यक होगा।
- ग्राम स्तरीय समुदाय संगठनकर्ताओं की पहचान करना व इसका खर्च सामुदायिक संगठन घटक के तहत पी. आई. ए. को जारी राशि में से किया जाएगा।
- गाँव में जलग्रहण विकास के बारे में जागरूकता बढा़ने तथा आस्था जाग्रत करने के लिए कार्यक्रम। यहाँ वातावरण निर्माण तथा प्रवेश गतिविधियाँ भी की जाती है।
- प्राकृतिक संसाधनों और उनसे जुडी़ समस्याओं का आकंलन करना।
- जलग्रहण विकास कार्यो के लिए समस्याओं और लोगों केे मत के आधार पर, विकल्पों की पहचान और सबसे उचित उपचार का चयन करना।
- जलग्रहण क्षेत्र में अलग-अलग जरूरतों, कार्यो के हिसाब से उपभोक्ता समूह और स्वयं सहायता समूह बनाना। (8-10 माह के भीतर )
- जलग्रहण विकास परियोजना को सही तरीके से चलाने के लिए जलग्रहण कमेटी, सचिव और स्वयं सेवक का चयन करना। साथ ही जलग्रहण समिति को राजस्थान सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकृत करवाना।
- जलग्रहण कमेटी द्वारा राष्ट्रीयकृत/सरकारी बैंक में जलग्रहण विकास निधि का खाता खोलना। खाता खोलने के बाद जिला नोडल एजेन्सी को उसकी सूचना करना।
- परियोजना क्रियान्वयन संस्था द्वारा योजना के लिए स्वीकृत राशि जलग्रहण कमेटी के मद में जारी करवाना और विकास कार्य प्रारम्भ करना।
- जलग्रहण विकास दल द्वारा विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करवाना-उपभोक्ता समूह. स्वयं सहायता समूह, जलग्रहण कमेटी अध्यक्ष, सचिव एवं स्वयं सेवक आदि के लिए।
- हर एक उपभोक्ता समूह स्वयं सहायता समूह का जलग्रहण विकास दल की मदद से कार्य योजना तैयार करना।
- जलग्रहण समिति द्वारा सहभागिता प्रबन्धन के लिए 5 पहलुओं पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है
(i) अभिलेखों व लेखों का संधारण
(ii) अंशदान की वसूली
(iii) सामाजिक अकेंक्षण
(iv) समूह एक्शन विरोध/प्रस्तावों का सरलीकरण
(v) समुदाय को सशक्त बनाना
- जलग्रहण समिति, जलग्रहण विकास दल की मदद से सभी एकल छोटी-छोटी कार्य योजनाओं को समन्वित या इकट्ठा कर एक जलग्रहण विकास योजना तैयार करना। यह एकीकृत जलग्रहण विकास योजना ही रणनीतिक कार्य योजना है।
- तैयार जलग्रहण रणनीतिक योजना को जलग्रहण संस्था से जलग्रहण विकास दल द्वारा अनुमोदित करा कर परियोजना क्रियान्वयन संस्था के माध्यम से जिला नोडल एजेन्सी द्वारा पारित करवाना। एक बार जब पूरी स्वीकृति जलग्रहण विकास रणनीतिक योजना बन जाती है और स्वीकृत हो जाती है तो वह पाँच साल की होती है। काम करने और करवाने की दृष्टि से आसान यह रहेगा कि पाँच साल के काम को एक-एक साल के हिस्सों में वार्षिक कार्य योजना के रूप में बाँट लिया जाए। जैसे स्वीकृति के बाद पहले साल में काम होगें, दूसरे साल में क्या आदि। और भी अच्छा रहे कि अगर काम का बंटवारा स्वयं सहायता समूह में बाँट दिया जाए। ऐसा करने पर काम करने और मापने, मूल्यांकन करने, दोनों में ही आसानी होगी।
- कार्य पूरा होने पर सचिव/ स्वयं सेवक द्वारा उनकी नपती करना/हिसाब लेखा लिखना। उसके बाद बिल बनाना।
- जलग्रहण सचिव द्वारा माप पुस्तिका में लिखने के बाद, प्रमाणित कर जलग्रहण कमेटी को बिल और दूसरे लेखे प्रस्तुत करना।
- कार्यो के बिलों का भुगतान से पूर्व जलग्रहण विकास दल द्वारा सत्यापन।
- जलग्रहण समिति का कार्यो को देखकर, वास्तविक मूल्यांकन कर संतुष्टि के बाद बिल का भुगतान करना ( यह प्रक्रिया हर कार्य/कार्यो के समूह के लिए की जाती है )
- जलग्रहण में वित्तीय वर्ष की समाप्ति के 6 माह के भीतर अकेंक्षित रिकार्ड (आॅडिट) जिला नोडल एजेन्सी को भेजना होगा।
- जब जारी किस्त का आधा भग खर्च हो जाए, तो आधी किस्त के लिए निर्धारित प्रपत्र में जिला नोडल एजेन्सी को आवेदन करना।
- यह कार्य की प्रक्रिया पाँच साल तक या जब तक कार्य न हो जाए चलती रहती है। उसके बाद जलग्रहण संस्था द्वारा जलग्रहण विकास कोष के उपयोग से बनाये गये संसाधनों का संचालन एवं रख-रखाव किया जाता है।
5.7 स्वपरक प्रश्न ( )
- जलग्रहण क्षेत्रों में पारदर्शिता कैसे लाई जा सकतीहै ?
- सूचना का अधिकार क्या है ?
- जलग्रहण विकास के चरण बतावें ?
5.8 सारांश ( )
जलग्रहण क्षेत्रों में सामाजिक अकेंक्षण एवं पारदर्शिता के लिए राजस्थान सरकार द्वारा 3 दिसम्बर 1998 को एक परिपत्र जारी किया है, इसके अन्तर्गत पंचायत अपने स्तर पर विभिन्न बैठकों में विचारणीय बिन्दु बनायेगी और इस पर अनिवार्य रूप से चर्चा करेगी। इससे सूचना का अधिकार सामान्य लोगों को प्राप्त हो सकेगा।
5.9 संदर्भ सामग्री ( )
- जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन।
- शिक्षण पुस्तिका- जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
- जलग्रहण मार्गदर्शिका- संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा निर्देश- जलग्रहण विकास एवं भू- संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
- जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल- जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
- राजस्थान में जलग्रहण विकास गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ- जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग द्वारा जारी।
- कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर मकनीकी मैनुअल।
- ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास-दिशा निर्देशिका।
- ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास- हरियाली मार्गदर्शिका।
- जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग द्वारा जारी।
- विभिन्न परिपत्र- राज्य सरकार जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग।
- जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी स्वयं सहायता समूह मार्गदर्शिका।
12.इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री- जलग्रहण प्रकोष्ठ।
- कृषि मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका।
- जलग्रहण विकास एवं भू-सरंक्षण विभाग द्वारा जारी सूचना के अधिकार की हस्तपुस्तिका।
15. भारत सरकार द्वारा जारी नई कामन मार्गदर्शिका।