|| काली दाढ़ी-मूंछ वाले होंगे पंचायत प्रतिनिधि||
आज से पंचायत चुनाव के लिए नामांकन आरम्भ होने जा रहे है। लोग उत्सुक हैं कि आगामी पांच साल तक ग्राम स्तर से लेकर जिला स्तर तक की बागडोर उनके हाथो आयेगी। और उत्सुकुता लाजमी भी है। पिछले पांच साल से जो उन्होंने अभियान चला रखा था कि वे आगामी चुनाव में जोर अजमाईश करेंगे। किया तो कानून सामने आ गया। फिर भी मैं नहीं तो मेरा बेटा, बहू, बेटी, भतीजी, भतिजा, भाई या भाई की बहू अथवा नजिदीकी रिश्तेदार बगैरह बगैरह।
अलबत्ता मौजूदा चुनाव में नये कानून के आने से लोग सकते में थे। बिते कल उच्च न्यायालय नैनीताल ने एक यचिका पर निर्णय दिया कि ग्राम स्तर पर दो से अधिक बच्चों वाले उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते है। इस तरह अब ग्राम स्तर पर चुनाव की पूरी गणित बदल गई है। सालो से तैयारी कर चुके लोग दो से अधिक बच्चों के कानून से बाहर हो गये थे। सो उन्होंने अब फिर से ताल ठोक दी है।
बता दें कि इस बार पंचायत का चुनाव एक नये रूप में सामने आने वाला था। यदि न्यायालय की मेहरबान नहीं होती। वैसे भी पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक के जनप्रतिनिधियों के रूप रंग से लेकर काम के मामलो तक में परिवर्तन दिखाई देने वाला है। हालांकि क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत में यही होने जा रहा है। माना जा रहा है कि जो भी प्रतिनिधि जीतकर आ रहा है वह स्नातक या परास्नातक से कम नहीं होगा। इनके चुनकर आने के बाद विभिन्न विभागो के विभागाध्यक्ष अब अंग्रेजी की कानाफूसी करते पकड़े जायेंगे तो दूसरी तरफ कागजी गड़बडियों को भी ये शिक्षित नौजवान रंगे हाथो पकड़ेंगे। इसके उलट यदि बजट को ठिकाने लगाने की बारी आयेगी तो भी ये इन नौजवानो का स्वरूप किसी खतरे से कमतर नहीं होगा। सुविधा और खतरे साथ-साथ चलते रहेंगे। ऐसा कुछ लोगो का अनुमान है।
उल्लेखनीय हो कि उत्तराखण्ड में हो रहे इस बार के पंचायत चुनाव में और चुनाव के बाद की तस्वीर सुजली सुजली सी नजर आने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। बता दें कि पंचायत चुनाव में नये कानून के आने के बाद कईयों लोगो ने यह सोचना बन्द कर दिया कि अब वे कभी चुनाव प्रक्रिया के हिस्सा बनेंगे या जनप्रतिनिधि के रूप में जनसेवा करेंगे। इस कानून ने बड़े बड़े धुरन्धर धाराशाही किये है। पर अब वे धुरन्धर चुप कहां रहने वाले है वे तो अपने वारिसों पर अजमाईश करेंगे। अर्थात इतना तय है कि काली दाढ़ी-मूंछवाले, सुडौल और चिकने चेहरो वाले नौजवान, स्वयं लिखने वाले, पढने वाले नौजवान ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायत के सदन के हिस्से होंगे।
फलस्वरूप इसके काम की संस्कृति पर भी प्रतिकूल असर दिखाई देगा। अधिकांश प्रतिनिधि मोबाईल के जमाने में ही पैदा हुए है उन्हे टाइपराइटर पद्धति के काम बोरियत करने वाले है। ऐसे प्रतिनिधियों का पाला टाइपराइटर जमाने के कर्मीयों से पड़ने वाला है। यह संतुलन कैसे बनेगा यह भी सवालो के घेरे में है। आशंका यह जताई जा रही है कि ऐसे कर्मी या तो स्वैच्छिक सेवानिवृति लेंगे या बार-बार स्थानान्तरण के शिकार होंगे। और कई सवाल हैं जिन्हे अगले अंक में प्रस्तुत किया जायेगा।