बादलों का धरती से हो रहा मिलाप है ।।
कितना सुुखद और सुहाना ये अहसास है।
बादलों का धरती से हो रहा मिलाप है ।
कुण्ठा की अग्नि में, मन क्षुब्ध, अतृप्त और उमस से पीड़ित,
आकांक्षाओं को भीतर ही दबाने की कोशिश अनवरत।
अनायास ही मेघ बरसे, मिट गयी सब धूल है,
याद कुछ भी नहीं अब, किसकी क्या भूल है।
सुन्दर, मनोहर, आनन्दित प्रकृति का ये प्रयास है,
कितना सुखद और सुहाना ये अहसास है।
बादलों का धरती से हो रहा मिलाप है,
गा रही धरती तराने झूम उठा है गगन,
मन मयूरा नाच रहा ,खग-मृग सब हुए प्रसन्न।
है प्रफुल्लित आज हर मन, चहुं ओर उल्लास है,
कितना सुखद और सुहाना ये अहसास है।
बादलों का धरती से हो रहा मिलाप है,
जल गये जो उपवन सूर्य की कठोर दृष्टि से,
पत्ता-पत्ता बिछडने लगा फिर अपनी सृष्टि से।
आज उनको तृप्त करता, ये बादलों का जल है,
भूत में जो समा रहे थे उनका उज्ज्चल कल है।
सौंधी सौंधी खुशबू, मिट्टी की, लग रही कुछ खास है,
कितना सुखद और सुहाना ये अहसास है।
बादलों का धरती से हो रहा मिलाप है।